Damodar Dharmanand Kosambi

Damodar Dharmanand Kosambi

दामोदर धर्मानन्द कोसंबी

प्रोफेसर दामोदर धर्मानन्द कोसंबी का जन्म 31 जुलाई, 1907 को गोवा में हुआ था। उनके पिता धर्मानन्द कोसंबी बौद्ध दर्शन के विश्रुत विद्वान थे, जिन्हें हार्वर्ड (संयुक्त राज्य अमरीका) में प्राध्यापन के लिए आमंत्रित किया गया था। दामोदर केवल ग्यारह वर्ष की अवस्था में पिता के साथ हार्वर्ड गए और वहाँ कैम्ब्रिज लैटिन स्कूल में दाखिल हुए। बाद में उन्होंने हार्वर्ड से गणित, इतिहास और भाषाओं में बहुत ऊँचे अंकों से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

भारत लौटकर प्रो. कोसंबी ने कुछ वर्ष तक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में और फिर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्राध्यापन किया। सन् 1932 में वे गणित के प्रोफेसर के रूप में फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में नियुक्त हुए, जहाँ उन्होंने चौदह वर्ष तक कार्य किया। अपने इस कार्यकाल को वे हँसी में ‘राम का वनवास’ कहा करते थे। इस वनवास के दौरान ही प्रो. कोसंबी ने ज्ञान के विविध क्षेत्रों पर अधिकार प्राप्त करने का अनथक संघर्ष किया और एक विचारक तथा विद्वान के रूप में अपनी महानता की आधारशिला रखी।

प्रोफेसर कोसंबी ने 1946 में बंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में गणित का अध्यक्ष-पद स्वीकार किया और सोलह वर्ष यहाँ रहे। इस दौरान प्रो. कोसंबी ने न सिर्फ अपनी पहले की गवेषणाओं को अन्तिम रूप दिया बल्कि जीव-विज्ञान, नृजाति-विज्ञान, पुरातत्व और प्राक्-इतिहास के क्षेत्र में अनुसन्धान के नए द्वार खोले।

प्रो. कोसंबी मानव-समाज और उसमें होनेवाले परिवर्तनों को मार्क्सवादी दृष्टि से व्याख्यायित करने में विश्वास करते थे, लेकिन खुद मार्क्स के तर्कों को आधुनिक अनुसन्धानों के आधार पर संशोधित करने से वे चूके नहीं। 20 जून, 1966 को प्रो. कोसंबी का असामयिक निधन हो गया।

प्रकाशित कृतियाँ: एन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ इंडियन हिस्ट्री (1956); एक्ज़ासपेरेटिंग एस्सेज़: एक्सरसाइज़ इन द डाइलैक्टिकल मैथड (1957); मिथ एंड रियलिटी (1962); द कल्चर एंड सिविलिजेशन ऑफ एंशिएंट इंडिया इन हिस्टॉरिकल आउटलाइन (1965)। इसके अतिरिक्त पाँच पुस्तकों का सम्पादन किया और 127 शोध-लेख लिखे।

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