ललितांबिका अंतर्जनम् (1909-1987) : मलयालम् की सुप्रसिद्ध कथाकार का जन्म कोट्टारक्करा (केरल) में हुआ। हालाँकि आपने कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं की लेकिन घर पर रहकर ही मलयालम् और संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किया। बाद में आपने हिंदी और अंग्रेजी में दक्षता प्राप्त की। मलयालम् में आपका योगदान अविस्मरणीय है। आपके सक्रिय रचनाकार्य को साहित्य की सभी विधाओं में देखा जा सकता है। आप पचास-पचपन साल तक निरंतर लिखती रहीं और कविता, कहानी, बाल-साहित्य – सभी क्षेत्रों में भरपूर योगदान किया। आपकी प्रमुख कृतियों में आबिकांजलि (1937), मूटुपटत्तिल् (1946), तकर्न्न तलमुरा (1949), कालतिंटे एटुकल् (1949) एवं अग्निपुष्पांजलि (1907) आदि विशेष उल्लेख्य हैं। आप लेखक सहकारिता समिति और केरल साहित्य अकादमी जैसी संस्थाओं से भी सक्रिय तौर पर जुड़ी रहीं। अपने साहित्यिक योगदान के लिए आपको केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार, वयालार रामवर्मा स्मृति पुरस्कार तथा गुरुवायूरप्पन् न्यास और ओटक्कुषल् पुरस्कार प्राप्त हुए।
अग्निसाक्षी का हिंदी अनुवाद मलयालम् एवं हिंदी के विशिष्ट विद्वान्, यशस्वी लेखक एवं समर्पित अनुवादक सुधांशु चतुर्वेदी (जन्म : 1943) ने किया है। आप हिंदी और मलयालम् भाषा के बीच एक सुदृढ़ सेतु के रूप में निरंतर कार्यरत तथा शताधिक कृतियों के सर्जक एवं अनुवादक हैं। आपको वर्ष 1995 में तकषी शिवशंकर पिळ्ळै के मलयाळम् उपन्यास कयर के हिंदी अनुवाद के लिए साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार तथा अन्य साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हैं।
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