Taslima Nasrin
तसलीमा नसरीन
तसलीमा नसरीन सुख्यात लेखक और मानवतावादी विचारक हैं। अपने विचारों और लेखन के लिए उन्हें अकसर फ़तवों का सामना करना पड़ा। विवादास्पद उपन्यास ‘लज्जा’ पर उन्हें उनके देश से निष्कासित कर दिया गया जहाँ वे 1994 से नहीं गईं। भारत समेत कई देशों से उन्हें विभिन्न सम्मानित पुरस्कारों और मानद उपाधियों से विभूषित किया जा चुका है। दुनिया की लगभग तीस भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद हो चुका है।
तसलीमा नसरीन ने अनगिनत पुरस्कार और सम्मान अर्जित किए हैं, जिनमें शामिल हैं – मुक्त चिन्तन के लिए यूरोपीय संसद द्वारा प्रदत्त – सखारव पुरस्कार; सहिष्णुता और शान्ति प्रचार के लिए यूनेस्को पुरस्कार; फ्रांस सरकार द्वारा मानवाधिकार पुरस्कार; धाखमक आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष के लिए फ्रांस का ‘एडिट द नान्त पुरस्कार’; स्वीडन लेखक संघ का टूखोलस्की पुरस्कार; जर्मनी की मानववादी संस्था का अर्विन फिशर पुरस्कार; संयुक्त राष्ट्र का फ्रीडम फ़्राम रिलिजन फाउण्डेशन से फ्री थॉट हीरोइन पुरस्कार और बेल्जियम के मेंट विश्वविद्यालय से सम्मानित डॉक्टरेट ! वे अमेरिका की ह्युमैनिस्ट अकादमी की ह्युमैनिस्ट लॉरिएट हैं। भारत में दो बार, अपने ‘निर्वाचित कलाम’ और ‘मेरे बचपन के दिन’ के लिए वे ‘आनन्द पुरस्कार’ से सम्मानित। तसलीमा की पुस्तकें अंग्रेजी, फ्रेंच, इतालवी, स्पैनिश, जर्मन समेत दुनिया की तीस भाषाओं में अनूदित हुई हैं। मानववाद, मानवाधिकार, नारी-स्वाधीनता और नास्तिकता जैसे विषयों पर दुनिया के अनगिनत विश्वविद्यालयों के अलावा, इन्होंने विश्वस्तरीय मंचों पर अपने बयान जारी किए हैं। ‘अभिव्यक्ति के अधिकार’ के समर्थन में, वे समूची दुनिया में, एक आन्दोलन का नाम बन चुकी हैं।