Aadhunik Sahitya Ki Pravritiyan

-20%

Aadhunik Sahitya Ki Pravritiyan

Aadhunik Sahitya Ki Pravritiyan

225.00 180.00

In stock

225.00 180.00

Author: Namvar Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 123

Year: 2018

Binding: Hardbound

ISBN: 9788180311116

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ
डॉ. नामवर सिंह हिन्दी आलोचना की वाचिक परम्परा के आचार्य कहे जाते हैं। जैसे बाबा नागार्जुन घूम-घूमकर किसानों और मजदूरों की सभाओं से लेकर छात्रा-नौजवानों, बुद्धिजीवियों और विद्वानों तक की गोष्ठियों में अपनी कविताएँ बेहिचक सुनाकर जनतान्त्रिाक संवेदना जगाने का काम करते रहे, वैसे ही नामवर जी घूम-घूमकर वैचारिक लड़ाई लड़ते करते रहे हैं; रूढ़िवादिता, अन्धविश्वास, कलावाद, व्यक्तिवाद आदि के खिलाफ चिन्तन को प्रेरित करते रहे हैं; नई चेतना का प्रसार करते रहे हैं। इस वैचारिक, सांस्कृतिक अभियान में नामवर जी एक तो विचारहीनता की व्यावहारिक काट करते रहे हैं, दूसरे वैकल्पिक विचारधारा की ओर से लोकशिक्षण भी करते रहे हैं।

नामवर जी मार्क्सवाद की अध्ययन की पद्धति के रूप में, चिन्तन की पद्धति के रूप में, समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन लानेवाले मार्गदर्शक सिद्धान्त के रूप में, जीवन और समाज को मानवीय बनानेवाले सौन्दर्य-सिद्धान्त के रूप में स्वीकार करते हैं। एक मार्क्सवादी होने के नाते वे आत्मलोचन भी करते रहे हैं। उनके व्याख्यानों और लेखन में भी इसके उदाहरण मिलते हैं। आलोचना को स्वीकार करने में नामवर जी का जवाब नहीं।

यही कारण है कि हिन्दी क्षेत्रा की शिक्षित जनता के बीच मार्क्सवाद और वामपंथ के बहुत लोकप्रिय नहीं होने के बावजूद नामवर जी उनके बीच प्रतिष्ठित और लोकप्रिय हैं। निबंध मूलरूप से कई जगहों पर एकाधिक बार व्याख्यान के रूप में प्रस्तुत हुए थे। लोगों के आग्रह पर इन्हें आगे चलकर स्वतंत्रा निबंधों के रूप में व्यवस्थित करने की कोशिश की गई है। नामवर जी अभी हिन्दी के सर्वोत्तम वक्ता हैं और माने भी जाते हैं। उनके व्याख्यान से भाषा के प्रवाह के साथ विचारों की लय होती है। इस लय का निर्माण विचारों के तारतम्य और क्रमबद्धता से होता है। अनावश्यक तथ्यों और प्रसंगों से वे बेचते हैं और रोचकता का भी ध्यान हमेशा रखते हैं।

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Pages

Publishing Year

2018

Pulisher

Language

Hindi

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Aadhunik Sahitya Ki Pravritiyan”

You've just added this product to the cart:

error: Content is protected !!