Aalochana Ke Pratyay Itihas Aur Vimarsh

-16%

Aalochana Ke Pratyay Itihas Aur Vimarsh

Aalochana Ke Pratyay Itihas Aur Vimarsh

450.00 380.00

In stock

450.00 380.00

Author: Kanhaiya Singh

Availability: 10 in stock

Pages: 208

Year: 2020

Binding: Hardbound

ISBN: 9789389742749

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

आलोचना के प्रत्यय इतिहास और विमर्श

आलोचक किसी कृति के सौन्दर्य-विमर्श में उसके मर्म से लेकर उसके रूप-विन्यास, शब्द संयोजन, अलंकृति आदि तत्वों की तलाश में एक नयी सृष्टि या सर्जना करता है। संस्कृत में एक उक्ति है : पंडित या आलोचक ही काव्य के रस को जानता है और ‘रस’ में ही सौन्दर्य और लावण्य है। काव्य-रस या काव्य-सौन्दर्य का भोक्ता तो कोई भी सहृदय पाठक होता है पर उसका विशिष्ट भोक्ता और उस भोज्य को पचाकर उसके सौन्दर्य की वस्तु-व्यंजना से लेकर उसकी बारीक अंतरंग परतों को उद्घाटित करने का काम आलोचक करता है। आलोचना में प्रचलित समाजविमर्श, मनोविमर्श, दलित-विमर्श, नारी-विमर्श आदि सभी विमर्शों का केन्द्रीय तत्व सौन्दर्य-विमर्श ही है। भारतीय कला-दृष्टि, रस-दृष्टि रही है। यह दृष्टि भाववादी दृष्टि ही नहीं, महाभाववादी दृष्टि है।

यह महाभाव ही हमारी आलोचना के आर्ष चिन्तन से लेकर अद्यतन वैचारिकी का केन्द्र बिन्दु है। हमने प्रत्यक्ष गोचर से लेकर उसमें अन्तर्निहित सूक्ष्म चेतन सौन्दर्य का विशेष चिन्तन किया। उपनिषद् में ‘सत्यधर्म’ के प्रसंग में कहा गया है कि बाह्य जगत सुन्दर तो है, पर उस सुन्दर स्वर्णपात्र की आभा के आवरण के भीतर सत्यधर्म का प्रभावमय सूर्य छिपा है।

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Aalochana Ke Pratyay Itihas Aur Vimarsh”

You've just added this product to the cart:

error: Content is protected !!