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आध्यात्मिक प्रश्नोत्तरी
प्रश्नोत्तर की परंपरा सृष्टि के आरंभ से ही चली आ रही है। सृष्टि के आदिकाल में जब ब्रह्माजी उत्पन्न हुए तो उनके भीतर भी सर्वप्रथम यह प्रश्न प्रस्फुटित हुआ-’क एष योऽसावहममब्जपृष्ठ एतत्कुतो वाब्जमनन्यदसु’ (श्रीमद्धा. 3/8/18) ’इस कमल की कर्णिका पर बैठा हुआ मैं कौन हूं ? यह कमल भी बिना किसी अन्य आधार के जल में कहां से उत्पन्न हो गया ?’ (’मैं’ कौन हूं और ’यह’ क्या है ?) इसे सृष्टि का आदिप्रश्न कहें तो अत्युक्ति न होगी ! प्रबुद्ध जिज्ञासुओं के प्रश्नों के उत्तर में अब तक न जाने कितने ग्रंथों की रचना हो चुकी है।
जगन्माता पार्वती के प्रश्न और आशुतोष भगवान शंकर के उत्तर के फलस्वरूप जगत् में विविध लौकिक एवं अलौकिक विद्याओं का प्राकट्य हुआ है, विविध शास्त्रों की रचना हुई है। शौनकादि ऋषियों के प्रश्न और सूतजी के उत्तर से अठारह पुराण बन गए। केनोपनिषद् और प्रश्नोपनिषद्-इन दो उपनिषदों की रचना प्रश्नों को लेकर ही हुई है।
सामान्यतः बाल्यावस्था से ही बालक के जिज्ञासु हृदय में प्रश्न प्रस्फुटित होने लगते हैं। परंतु जब मनुष्य पारमार्थिक पथ पर अपने पग रखता है, तब उसके भीतर प्रश्नों का एक विशेष सिलसिला शुरू हो जाता है। और वह ढूंढने लगता है ऐसे संत या गुरु को, जो उसके प्रश्नों का समुचित उत्तर देकर उसका सही मार्गदर्शन कर सके।
प्रस्तुत पुस्तक ‘आध्यात्मिक प्रश्नोत्तरी’ को सार्वजनिक उपयोगिता और महत्व के विचार से जनहित में प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है। पाठकों से विनम्र निवेदन है कि वे इस पुस्तक में आई श्रेष्ठ बातों को अपने जीवन में धारण करें।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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