Andhshraddha Ki Gutthi
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अंधश्रद्धा की गुत्थी
विश्वास और अंधविश्वास में अंतर समझते समय मूल दिक्कत यह आती है कि एक समय में जिस विश्वास को सराहा जाता था वही दूसरे समय में अंधविश्वास बन जाता है। समाज का एक हिस्सा जिसे अंधविश्वास मानता है, वही किसी दूसरे समूह को पवित्र लगता है। सती प्रथा और मेलों में दी जानेवाली बलि ऐसी ही परंपराएँ थीं। एक सदी पूर्व का यह विश्वास आज नृशंस अंधविश्वास की श्रेणी में आ गया है।
इसीलिए श्रद्धाओं की जाँच करनी पड़ती है। विज्ञान के विकास का इतिहास ऐसी ही श्रद्धाओं की जाँच करने का इतिहास है। कोपर्निकस, गैलिलियो ने इन श्रद्धाओं को जाँचा, और जो पाया, उसे व्यक्त करने पर यातना भी सही। क्या समाज सुधार का इतिहास भी ऐसा ही नहीं है? इस पर गौर करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि श्रद्धा की जाँच करना और जिन्हें वह श्रद्धा सामाजिक जीवन के लिए अनिष्ट व अनुचित लगती है, उन्हें उन श्रद्धाओं के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष के लिए संगठित करने की आजादी आज की बड़ी जरूरत है।
अंधविश्वास उन्मूलन के बारे में सुधीजन एक सलाह और देते हैं कि असहमति जताओ लेकिन विरोध मत करो। लेकिन सामाजिक परिवर्तन के लिए असहमति तक सीमित रहना संभव नहीं है। उसके लिए सक्रिय आंदोलन की जरूरत होती है। सचेत संघर्ष की जरूरत होती है। इस पुस्तक में ऐसे ही संघर्षों का विवरण डॉ. नरेंद्र दाभोलकर ने अपने शब्दों में दिया है। ‘बोलता पत्थर’, ‘लंगर का चमत्कार’, ‘कमर अली दरवेश की पुकार’, ‘अनुराधा देवी की बंद मुट्ठी’ और अन्य ऐसी ही अंधविश्वास-पूर्ण गतिविधियों के विरुद्ध डॉ. नरेंद्र दाभोलकर और उनके संगठन के ये आंदोलन निस्संदेह पठनीय है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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