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आत्मजयी
पिछले पच्चीस वर्षों में ‘आत्मजयी’ ने हिन्दी साहित्य के एक मानक प्रबन्ध-काव्य के रूप में अपनी एक खास जगह बनायी है और यह अखिल भारतीय स्तर पर प्रशंसित हुआ है।
‘आत्मजयी’ का मूल कथासूत्र कठोपनिषद् में नचिकेता के प्रसंग पर आधारित है। इस आख्यान के पुराकथात्मक पक्ष को कवि ने आज के मनुष्य की जटिल मनःस्थितियों को एक बेहतर अभिव्यक्ति देने का एक साधन बनाया है।
जीवन के पूर्णानुभव के लिए किसी ऐसे मूल्य के लिए जीना आवश्यक है जो मनुष्य में जीवन की अनश्वरता का बोध कराए। वह सत्य कोई ऐसा जीवन-सत्य हो सकता है जो मरणधर्मा व्यक्तिगत जीवन से बड़ा, अधिक स्थायी या चिरस्थायी हो। यही मनुष्य को सांत्वना दे सकता है कि मर्त्य होते हुए भी वह किसी अमर अर्थ में जी सकता है। जब वह जीवन से केवल कुछ पाने की ही आशा पर चलने वाला असहाय प्राणी नहीं, जीवन को कुछ दे सकने वाला समर्थ मनुष्य होगा तब उसके लिए यह चिन्ता सहसा व्यर्थ हो जाएगी कि जीवन कितना असार है-उसकी मुख्य चिन्ता यह होगी कि वह जीवन को कितना सारपूर्ण बना सकता है।
‘आत्मजयी’ मूलतः मनुष्य की रचनात्मक सामर्थ्य में आस्था की पुनःप्राप्ति की कहानी है। इसमें आधुनिक मनुष्य की जटिल नियति से एक गहरा काव्यात्मक साक्षात्कार है। इतावली भाषा में ‘नचिकेता’ के नाम से इस कृति का अनुवाद प्रकाशित और चर्चित हुआ है-यह इस बात का प्रमाण है कि कवि ने जिन समस्याओं और प्रश्नों से मुठभेड़ की है उनका सार्विक महत्त्व है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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