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Description
बर्फियाँ व्यंग्य की
अफसर होना व्यर्थ है
अफसर होना व्यर्थ है, घर में पूछ न ताछ
पत्र-प्रपोजल छोड़कर, बना रहे हैं छाछ
बना रहे हैं छाछ, प्रभु क्या हालत कीन्हीं
मैडम का अब काम रह गया नुक्ता-चीनी
माँ के संग मिलकर बच्चे भी कोस रहे हैं
कुछ आता-जाता नहीं, ये केवल बॉस रहे हैं।
पोशाक
फ्रंट रो में एक नेता चल रहे थे साथ-साथ
झकझकाती ड्रेस उनकी देखकर मैंने कहा
तीन पीढ़ी से यही पोशाक,
कोई खास बात ?
वो जरा से मुस्कराए
कवि से कोई क्या छुपाए ?
आजकल इसके बिना पहचान नहीं है
अस्ल बात—इसमें गिरेबान नहीं है !
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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