Bela

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Author: Suryakant Tripathi Nirala

Availability: 10 in stock

Pages: 111

Year: 2017

Binding: Paperback

ISBN: 9788180319983

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

बेला
‘बेला’ और ‘नये पत्ते’ के साथ निराला-काव्य का मध्यवर्ती चरण समाप्त होता है। ‘बेला’ उनका एक विशिष्ट संग्रह है, क्योंकि इसमें सर्वाधिक ताजगी है। अफ़सोस कि निराला-काव्य के प्रेमियों ने भी इसे लक्ष्य नहीं, इसे उनकी एक गौण कृति मान लिया है। ‘नये पत्ते’ में छायावादी सौंदर्य-लोक का सायास किया गया ध्वंस तो है ही, यथार्थवाद की अत्यंत स्पष्ट चेतना भी है।

‘बेला’ की रचनाओं की अभिव्यक्तिगत विशेषता यह है कि वे समस्त पदावातली में नहीं रची गयीं, इसलिए ‘ठूँठ’ होने से बाख गयी हैं। इस संग्रह में बराबर-बराबर गीत और गजलें हैं। दोनों में भरपूर विषय-वैविध्य है, यथा रहस्य, प्रेम, प्रकृति, दार्शनिकता, राष्ट्रीयता आदि। इसकी कुछ ही रचनाओं पर दृष्टिपात करने से यह बात स्पष्ट हो जाती है। ‘रूप की धारा के उस पार/ कभी धंसने भी डोज मुझे ?’, ‘बातें चलीं सारी रात तुम्हारी; आँखे नहीं खुलीं प्राप्त तुम्हारी।’, ‘लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो /भरा दौंगरा उन्हीं पर गिरा। ‘बहार मैं कर दिया गया हूँ । भीतर, पर, भर दिया गया हूँ।’ आदि। राष्ट्रीयता ज्यादातर उनकी गजलों में देखने को मिलती है। निराला की गजलें एक प्रयोग के तहत लिखी गयी हैं। उर्दू शायरी की एक चीज उन्हें बहुत आकर्षित करती थी। वह भी उसमें पूरे वाक्यों का प्रयोग। उन्होंने हिंदी में भी गजलें लिखकर उसे हिंदी कविता में भी लाने के प्रयास किया। निराला-प्रेमियों ने भी उसे एक नक़ल-भर मन और उन्हें असफल गजलकार घोषित कर दिया। सच्चाई यह कि आज हिंदी में जो गजले लिखी जा रही हैं, उनके पुरस्कर्ता भी निराला ही हैं। ये गजलें मुसलसल गजलें हैं। मैं स्थानाभाव में उनकी एक गजल का एक शेर ही उद्धृत कर रहा हूँ : तितलियाँ नाचती उड़ाती रंगों से मुग्ध कर-करके, प्रसूनों पर लचककर बैठती हैं, मन लुभाया है।

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Paperback

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Publishing Year

2017

Pulisher

Language

Hindi

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