Bharat Ka Swarnim Ateet

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Bharat Ka Swarnim Ateet

Bharat Ka Swarnim Ateet

100.00 99.00

In stock

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Author: Swami Avdheshanand Giri

Availability: 10 in stock

Pages: 144

Year: 2016

Binding: Paperback

ISBN: 9788131014073

Language: Hindi

Publisher: Manoj Publications

Description

भारत का स्वर्णिम अतीत

संपत्ति यदि आंखों के सामने न हो, और उसके मूल्य से भी आप अनभिज्ञ हों, तो वह अपना अर्थ खो देती है। आप अमीर होकर भी गरीब बने रहते हैं। यही बात सांस्कृतिक विरासत के संदर्भ में भी है। उसकी जानकारी भी जरूरी है। इस संदर्भ में यह जानना भी आवश्यक है कि व्यवहार की दृष्टि से यह कितनी उपयोगी है। क्योंकि मानव-मन निरर्थक को संजोना नहीं चाहता और वह उसे संजोता भी नहीं है। इसीलिए अपनी संस्कृति के आधार-स्तंभों को जानना जरूरी है। इन्हें भूलने का अर्थ है अपने अस्तित्व को नकारना और फिर एक सुनिश्चित प्रक्रिया को अपनाते हुए विनष्ट हो जाना। इस प्रकार की उपेक्षा ’आत्महत्या’ से कम नहीं है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिन जातियों और देशों ने अपनी मूल-संस्कृति को नकार दिया, उनका अस्तित्व नष्ट हो गया, या फिर वह टूटकर बिखरने के कगार पर हैं।

यह अतिशयोक्ति नहीं है कि जो हमारे पास है और जितनी मात्रा में है वह और किसी के पास नहीं है। जब यह कहा जाता है-व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वम्, अर्थात् ’विश्व का समस्त चिंतन व्यास की झूठन मात्र है’, दूसरे शब्दों में, कोई भी चिंतन-विधा ऐसी नहीं है, जो व्यास की रचनाओं में न हो, तो कुछ लोगों को इस पर आपत्ति होती है, लेकिन दार्शनिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक समग्र विचारधाराओं के सूत्र आपको महाभारत तथा पुराणादि में मिल जाएंगे।

इसीलिए आध्यात्मिक समृद्धि के संदर्भ में समूचा विश्व हमारी इस श्रेष्ठता को लेकर एकमत है। लेकिन यदि भौतिक उन्नति की बात की जाए, तो उसके सूत्र भी हमारे पूर्वजों ने हमें दिए हैं, यह बात अलग है कि हमने उनके प्रति उपेक्षा बरती-उसकी वजह क्या है और कितनी सार्थक है, यह एक अलग विचारणीय विषय है। परंतु आज विश्व इस बात को स्वीकार करता है कि भारतीय जिस क्षेत्र में प्रवेश कर जाए, उसकी गहराइयों को नापने की क्षमता उसमें पूरी तरह से है। विश्व में आज भारतीयों की प्रतिष्ठा से स्पष्ट हो जाता है कि पूर्वोक्त गर्वोक्ति नहीं व्यावहारिक सत्य है।

इस पुस्तक में आपको झलक मिलेगी ऐसी ही भारतीय मनीषा की। कुछ विशिष्ट व्यक्तित्वों के बारे में जानकर आपको अलौकिकता और दिव्यता का अनुभव होगा। आपको ऐसा लगेगा कि आप किसी अतिमानवीय चरित्र का दर्शन कर रहे हैं।

हिंदू-संस्कृति का वर्णन करने वाले पुराण ग्रंथों में इतिहास के रूप में केवल राजाओं, राज-सत्ता और उनके विस्तार तथा कार्यकलापों की ही चर्चा नहीं है, वहां संत-महापुरुषों, तपस्वियों के कठोर और पावन जीवन-चरित्र के साथ ही उन वीर पुरुषों की भी गाथा है, जिन्होंने मन के ऊबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनुभवपरक मार्ग का ही निर्माण नहीं किया, जीवन के परम लक्ष्य को भी प्राप्त किया। इस कठिन यात्रा में वे गिर-गिरकर उठ खड़े हुए और एक दिन रास्तों को उनके सामने अपना मस्तक झुकाना पड़ा। इनका उद्देश्य यही था कि मानव इस बात को भलीप्रकार समझे कि बारबार गिरना जितना सहज है, उतना ही स्वाभाविक है, बारबार उठ खड़े होना। इसी को पुरुषार्थ कहते हैं।

आचार्य महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज की अब तक प्रकाशित पुस्तकों से यह इसलिए अलग है क्योंकि इसमें उपदेशपरक कुछ खास नहीं है, हां, इससे आपको अपने अतीत का ज्ञान होगा कि वह कितना गरिमामय था। हमें विश्वास है कि भारतीय होने पर गर्व का अहसास यह पुस्तक आपको अवश्य कराएगी।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2016

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