Bharat Ke Pracheen Bhasha Pariwar Aur Hindi Bhag – 2
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भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी-2
तीन खण्डों में प्रकाशित इस युगान्तरकारी ग्रन्थ का यह दूसरा खण्ड है। प्रख्यात समालोचक और भाषाविद् डॉ. रामविलास शर्मा ने इस खण्ड में इण्डोयूरोपियन भाषा-परिवार की भारतीय पृष्ठभूमि का गहन और व्यापक विश्लेषण किया है।
इण्डोयूरोपियन भाषा-परिवार में अनेक भाषाएँ-अधिकांश यूरोपीय, ईरानी तथा काश्मीर के उत्तर में तुखारी से लेकर तुर्की की गतवाक् हित्ती भाषा तक-शामिल हैं और ‘इस विशाल भूखण्ड की प्राचीन और नवीन भाषाओं की पृष्ठभूमि में हैं भारत की आर्य और आर्येतर भाषाएँ,’ इसलिए कोसल, मगध, कुरु आदि प्राचीन भारतीय गण-समाजों की भाषाओं को समझे बिना इण्डोयूरोपियन भाषा-परिवार को जानना सम्भव नहीं है। यही कारण है कि इस खण्ड में ‘आर्य भाषाओं का विवेचन पहले है’ और ‘इण्डोयूरोपियन परिवार का विवेचन बाद को।’
इस विवेचन से यह स्पष्ट है कि हिन्दी का विकास ‘कोई अद्भुत व्यापार’ नहीं बल्कि ‘एक वृहत्तर विकास-प्रक्रिया का अंग’ है, जिसे समझने के लिए मात्र संस्कृत की पृष्ठभूमि काफी नहीं है, क्योंकि ‘अनेक आर्य भाषाओं से अनेक इण्डोयूरोपियन भाषाओं का शताब्दियों तक भिन्न प्रकार का सम्बन्ध रहा है’ और ‘ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के लिए आवश्यक सामग्री केवल प्राचीन भाषाओं से नहीं, आधुनिक भाषाओं से भी प्राप्त होती है; केवल मानक भाषाओं से नहीं, पिछड़े हुए समाजों की बोलियों से भी होती है।’
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2008 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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