Bharat Ke Prachin Nagaron Ka Patan

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Bharat Ke Prachin Nagaron Ka Patan

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650.00 570.00

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Author: Ramsharan Sharma

Availability: Out of stock

Pages: 298

Year: 2016

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126700752

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

सुविख्यात इतिहासकार प्रो. रामशरण शर्मा की यह कृति पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर प्राचीन काल के अंतिम और मध्यकाल के प्रारंभिक चरण में भारतीय नगरों के पतन और उजड़ते जाने का विवेचन करती है। इसके लिए लेखक ने तत्कालीन शिल्प, वाणिज्य और सिक्कों के अध्ययनार्थ भौतिक अवशेषों का उपयोग किया है तथा 130 से भी ज्यादा उत्खनित स्थलों के विकास और विनाश के चिह्नों की पहचान की है।

इस क्रम में जिन स्तरों पर अत्यंत साधारण किस्म के अवशेष मिले हैं, वे इस बात का संकेत हैं कि भवन-निर्माण, उत्पादन और वाणिज्यिक गतिविधियों में कमी आने लगी थी। लेखक के अनुसार नगर-जीवन के लोप होने के कारणों में साम्राज्यों का पतन तो है ही, सामाजिक अव्यवस्था और दूरवर्ती व्यापार का सिमट जाना भी है। लेकिन नगर-जीवन के बिखराव को यहाँ सामाजिक प्रतिगामिता के रूप में नहीं, बल्कि सामाजिक रूपांतरण के एक अंग की तरह देखा गया है, जिसने क्लासिकी सामंतवाद को जन्म दिया और ग्रामीण जीवन को विस्तारित एवं संवर्धित किया।

यह कृति नगर-जीवन के ह्रास और शासकीय अधिकारियों, पुरोहितों, मंदिरों एवं मठों को मिलनेवाले भूमि-अनुदानों के बीच संबंध-सूत्रों की भी तलाश करती है। यह भी दिखाया गया है कि भूमि-अनुदान प्राप्त करनेवाले वर्ग किस प्रकार अतिरिक्त उपज और सेवाएँ सीधे किसान से वसूलते थे तथा नौकरीपेशा दस्तकार जातियों को भूमि-अनुदान एवं अनाज की आपूर्ती द्वारा पारिश्रमिक का भुगतान करते थे। इस सबके अलावा प्रो. शर्मा की यह कृति ई.पू. 1000 के उत्तरार्द्ध और ईसा की छठी शताब्दी के दौरान आबाद उत्खनित स्थलों के नगर-जीवन की बुनियादी जानकारी भी हासिल कराती है।

कहना न होगा कि यह पुस्तक उन तमाम पाठकों को उपयोगी और रुचिकर लगेगी, जो कि गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल की सामाजार्थिक व्यवस्था में परिवर्तन की प्रक्रियाओं का अध्ययन करना चाहते हैं।

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Hardbound

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Publishing Year

2016

Pulisher

Language

Hindi

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