Dhaan Ki Baali Par Os

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Dhaan Ki Baali Par Os

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300.00 225.00

In stock

300.00 225.00

Author: Mahashweta Devi

Availability: 5 in stock

Pages: 180

Year: 2012

Binding: Hardbound

ISBN: 9789350009710

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

धान की बाली पर ओस

एषा धीमे क दमों से बाहर चली आयी। वह कृतज्ञ थी ! तपन के प्रति वह कृतज्ञ थी। वह अनिमेष का निर्देश पूरा करने के लिए तपन के पास गयी थी, वर्ना उसने तो तपन को प्यार नहीं किया, उसे प्यार कर ही नहीं सकती थी। अचानक उसका मन स्टेशन पहुँचने को तड़प उठा-हावड़ा स्टेशन ! वहाँ जाने का मन क्‍यों हुआ, उसे नहीं पता।

अब जाकर उसे लगा, वह अनिमेष से बचना चाहती थी, इसलिए सुबह-सवेरे ही वह तपन के यहाँ चली आयी थी। अनिमेष शायद अभी गया नहीं होगा। शायद उसकी ट्रेन अभी भी प्लेटफॉर्म पर हो। उसका मन हुआ, वह दौड़कर पहुँच जाए। अनिमेष से कहे, तपन ने भी मुझे कबूल नहीं किया, अनी’दा। अब, तुम मुझे छोड़कर मत जाओ। हावड़ा प्लेटफॉर्म पर अनिमेष नहीं था, सिर्फ विभा थी। दोनों की निगाहें एक-दूसरे के चेहरे पर स्थिर हो गयीं। एक को अनी ने प्यार नहीं किया, एक को प्यार कर बैठा, फिर भी दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने थीं।… एषा कान लगाये खड़ी रही। जो ट्रेन रायपुर की तरफ चल पड़ी थी, उसकी आवाज सुनते हुए उसे बेहद अच्छा लगा। हालाँकि किसी भी आवाज की प्रतिध्वनि देर तक नहीं ठहरती। एषा की जिन्दगी से भी होकर गुजर जानेवाली ट्रेन की आवाज भी नहीं ठहरी ! आवाज की उम्र काफी क्षणिक… काफी अस्थायी होती है।

 

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2012

Pulisher

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