Hemchandra Vikramaditya

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Hemchandra Vikramaditya

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250.00 225.00

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Author: Sayiya Sunami

Availability: 5 in stock

Pages: 184

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9788193296899

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

हेमचन्द्र विक्रमादित्य

प्राक्कथन

‘‘श्री सय्याह सुनामी’’ का ‘‘हेमचन्द्र विक्रमादित्य’’ वीर रस प्रधान उपन्यास है। आज के युग में ऐसी पुस्तकों की आवश्यकता होते हुए भी प्रायः अभाव पाया जाता है।

वर्तमान युग में पूर्ण संसार में शान्ति, राजनीतिक दाँव-पेंच में, एक मोहरा मात्र रह गई है। इस पर भी शान्ति के बार-बार उच्चारण ने भीरुता ही उत्पन्न को है। भारत में शान्ति, उद्देश्य के स्थान पर-एक कार्यक्रम बन गया है। अतः जान-बूझकर अथवा अनजाने में, शान्ति के पुजारी जन-जन में शान्ति का संचार करने के स्थान पर अशान्ति उत्पन्न करने में ही योग्य हुए हैं।

इस पर भी शान्ति की धूम है और भारत के लेखक भी इस सम्मोहनी मन्त्र के जादू में आकर वीर रस पर लिखना छोड़ बैठे हैं। भारत के महान्‌ नेता तो युद्ध का उल्लेख करना भी एक गये जमाने की मूर्खता कहते हैं। अतः लेखकों ने नेता का संकेत पा वीर रस लिखने को भी गये जमाने का पशुपन मान लिया है। आज लेखक प्रायः श्रृंगार रस पर लिखने में ही अपने को कृत-कृत्य मानते हैं।

‘‘श्री सय्याह सुनामी’’ की इस पुस्तक ने वीर गाथा लिखने की कला का पुनरोद्धार करने का एक सफल प्रयास किया है। इसलिये मैं योग्य लेखक को बधाई का पात्र मानता हूँ।

योग्य लेखक ने मुसलमानों के आक्रमण के समय हिन्दू अर्थात्‌ तत्कालीन भारत के निवासियों की भूलों पर भी एक धीमा-सा प्रकाश डालने का यत्न किया है। मुट्ठी-भर मुसलमान इतने बड़े देश में अपनी राज्य सत्ता कैसे जमा बैठे ? उस समय क्या करना चाहिये था जो नहीं किया गया, उपन्यास के पात्र रविशंकर की समझ में तो आया परन्तु करने योग्य व्यक्ति करने में सफल नहीं हो सका।

प्रतिभाशाली लेखक की पैनी दृष्टि हिन्दुओं की पराजय में, एक अन्य कारण को भाँपने से नहीं चूकी – वह है हिन्दुओं का उन पर भरोसा करना जिनका जीवनोद्देश्य हिन्दू जीवनोद्देश्य से सर्वथा भिन्न है। सामयिक समानता को देखकर आधारभूत विरोध की अवहेलना करना हिन्दुओं का स्वभाव-सा बन गया है।

हिन्दुओं की यह त्रुटि बहुत पहले काल से उनमें देखी जा रही है। जयचन्द्र की पृथ्वीराज से शत्रुता में मुहम्मद गौरी को साथी मान उसको समर में सहयोग देना इसी दूषित मनोवृत्ति का एक प्रमाण है। अनेकों बार हिन्दू उनसे मित्रता करने के लिए तैयार हो जाते हैं जिनसे हमारी सैद्धान्तिक मतभेद होता है। सामयिक ऐक्य के लक्षण देखकर हम आधारभूत सच्चाई को भूल जाने का स्वभाव-सा बना बैठे हैं।

सुनामी जी की इस कृत्ति को पढ़ने और उसके रसास्वादन का पाठकों को निमन्त्रण देते हुए मैं उनसे इस बात का अनुरोध करने से चूक नहीं सकता कि उपन्यास में चरित्र-चित्रण का उद्देश्य एक रसमय रचना करने के अतिरिक्त भी कुछ होता है। मेरा आग्रह है कि उस चरित्र-चित्रण से लाभ उठाने की ओर ध्यान ले जाने की आवश्यकता है।

जहाँ तक लेखक का सम्बन्ध है वह तो हजरत ईसा की भाँति बीज बिखेरता चला जाता है। उनमें से कितने अंकुर पकड़ते और फलते-फूलते हैं यह देखना उसका काम नहीं होता। कदाचित्‌ यह देखने का उसके पास अवकाश नहीं होता वह तो बीजारोपण करता जाता है यही उसका काम है।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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