Jhoothi Hai Tetri Dadi

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Jhoothi Hai Tetri Dadi

Jhoothi Hai Tetri Dadi

150.00 120.00

In stock

150.00 120.00

Author: Sanjeev

Availability: 5 in stock

Pages: 99

Year: 2012

Binding: Hardbound

ISBN: 9789350008218

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

झूठी है तेतरी दादी

प्रेमचन्द से पहले हिन्दी कहानी उस रूप में नहीं थी, जिस रूप में उसे बाद में जाना गया – जिस रूप में एक साहित्य-विधा के बतौर उसने मान्यता पायी। पहले कहानी का मतलब था आख्यान, और वह आख्यान ‘कथा सरित्सागर’, ‘कादम्बरी’, ‘अरब की हज़ार रातें’ से होता हुआ हिन्दी तक आया था। प्रेमचन्द ने आख्यान-तत्त्व को बरकरार रखते हुए, उसमें भारत के सामाजिक-आर्थिक राजनीतिक यथार्थ की भावना देकर हिन्दी कहानी का विकास किया। उसके बाद हिन्दी कहानी वह नहीं रह गयी, जो पहले थी।

स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी कहानी को इसी आलोक में देखना होगा। कुछ क्षेपकों को छोड़ दें, तो ’80, ’90 और 2000 के दशकों में जो युवा पीढ़ियाँ कहानी की ज़मीन पर अवतरित हुई उनके लाइट हाउस प्रेमचन्द ही हैं।

1980 के दशक के कथाकारों में प्रेमचन्द की यथार्थवादी धारा को वर्तमान तक लाने वाले हस्ताक्षरों में संजीव का नाम अग्रणी है। वे उन कथाकारों में भी हैं जिनके नाम के साथ अंग्रेज़ी का ‘प्रोलिफिक’ विशेषण बेहिचक जोड़ा जा सकता है। सात उपन्यासों और ग्यारह कहानी संग्रहों के साथ वे समकालीन कथाकारों में दूर से पहचाने जाते हैं। लोक संस्कृति और शहरी संस्कृति के द्वन्द को जिस पैनी दृष्टि से उनकी रचनाएँ उभारती हैं, उसी अभिज्ञा के साथ भूमण्डलीकरण, बाज़ार अर्थ-नीति और विकास के निहितार्थ भी उनके यहाँ उजागर होते हैं। ग्यारह कहानियों के संजीव के इस नये संग्रह में भी सजग पाठक देखेंगे कि एक ओर जहाँ ग्राम-समाज में पारम्परिक सामन्ती ढाँचा बुरी तरह चरमरा रहा है और एक तरह का नया अर्थवाद उभरकर सामने आ रहा है (मौसम), वहीं दूसरी ओर पर्दा प्रथा, जाति और वर्ण की जकड़बन्दी यथावत् है, जिसका आखेट तेतरी जैसी निश्छल-निरक्षर महिलाएँ होती हैं। यहाँ संजीव ‘हत्यारा’ और ‘हत्यारे’, ‘नायक’ और ‘खलनायक’ और ‘अभिनय’ को जिन अर्थों में परिभाषित करते हैं, उनके बाज़ार-पूँजीवाद, कृषि-विमुख औद्योगिक जाल और मीडिया द्वारा प्रचारित नयी रूढ़ियों के अट्टहास साफ़-साफ़ सुने जायेंगे।

संजीव की ये कहानियाँ आज के विश्व-समय की हमारे सामाजिक जीवन और आर्थिक ढाँचे पर पड़ रही प्रतिछाया का अभिलेख भर नहीं हैं, बल्कि एक ज़रूरी और उत्तेजक विमर्श भी खड़ा करती हैं, जिसका सम्बन्ध हम-आप सब से है।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2012

Pulisher

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