Julekha

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Julekha

Julekha

195.00 160.00

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195.00 160.00

Author: Yashpal

Availability: 5 in stock

Pages: 300

Year: 2015

Binding: Paperback

ISBN: 9789352210039

Language: Hindi

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

जुलैखां

पहला परिच्छेद

पुराने नगर के अन्त की बस्ती, निमांचा भी, बहुत पुरानी बस्ती थी। जाने कब से वहां बुनकरों के परिवार बसे हुये थे।

बुनकरों का धन्धा ख़ानदानी था। बाप-दादा का धन्धा निबाहते चले आ रहे थे। स्त्रियाँ सूत कातती थीं और मर्द करघों पर मोटा गाढ़ा बुनते थे। यदि पिता बेटे के लिये करघा न छोड़ जाता तो समझो लड़के का भाग्य डूब गया। बच्चे तुतलाना आरम्भ करते तो सबसे पहले ‘ढिकली’ और ‘नरिया’ कहना सीखते। बचपन में ही जान लेते थे कि बुनकर का धन्धा ही उनके जीवन का आधार था।

निमांचा के बहुत से परिवारों को गर्व था कि उनके यहां सात-आठ पीढ़ियों से कपड़ा बुना जा रहा था परन्तु ऐसा तो एक भी परिवार नहीं था, जिसे कमर ढकने लायक दो हाथ कपड़ा भी सदा सुविधा से मिलता रहा हो। अपने धन्धे के सहारे वे लोग जैसे-तैसे रूखी रोटी का टुकड़ा भर पा जाते थे। सदा पेट भर भोजन और आवश्यक कपड़ा पा सकने की तो वे आशा भी नहीं कर सकते थे।

छोटे-छोटे बच्चों को भी छड़ियाँ देकर पुरानी रुई झाड़ने के लिये बैठा दिया जाता था। रुई की गर्द से उनके फेफड़े चलनी हो जाते। चालीस की उमर तक आते-आते वे लोग कब्र में भी पहुंच जाते। सभी जानते थे, बुनकरों के भाग्य में यही बदा था फिर भी बाप-बेटे को अपना अभागा धन्धा सिखाता चला आ रहा था।

गर्मी के दिनों में निमांचा की गलियों में खूब धूल भर जाती थी। बस्ती के कच्चे मकानों की छतों, मिट्टी की दीवालों और धूप से मुरझाये दो-चार उदास पेड़ों पर भी धूल की परत जम जाती थी। पुरानी रुई, छड़ियों से पिट-पिट कर सुथरी होकर फूल जाती, ताजा बन जाती और उसकी गर्द कोहरे की तरह हवा में भर जाती। आंगन गर्द से भरे रहते। लोगों के हाथ, मुंह और कपड़ों पर भी गर्द जमी रहती। आंगनों में था ही क्या ! कच्ची गिरती दीवालों में हो गये छेदों में से कोई भी भीतर झांक लेता तो वीरानी ही वीरानी दिखायी देती।

निमांचा की पूरी बस्ती वीरान, उदास और गन्दी थी। केवल नीली मस्जिद के पीछे एक आलीशान हवेली थी। हवेली खूब हरे-भरे बाग-बगीचों से घिरी हुयी थी। ऐसा लगता था कि निर्जन रेगिस्तान में, पूरे प्रदेश की हरियाली और जल एक ही जगह सिमिट आया हो। हवेली कुदरतुल्ला खोजा की थी। कुदरतुलला निमांचा की बुनकर बस्ती के मालिकों का अन्तिम उत्तराधिकारी था। निमांचा के यह मालिक पीढ़ियों से बस्ती के जीवन का रक्त चूस-चूस कर पुष्ट होते रहे थे।

Additional information

Weight 0.5 kg
Dimensions 21 × 14 × 4 cm
Authors

Binding

Paperback

ISBN

Pages

Publishing Year

2015

Pulisher

Language

Hindi

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