Kala Ki Zaroorat
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कला की जरूरत
ऑस्ट्रिया के विश्वविख्यात कवि और आलोचक अंर्स्ट फिशर की पुस्तक कला की जरूरत कला के इतिहास और दर्शन पर मार्क्सवादी दृष्टि से विचार करनेवाली अत्यंत महत्त्वपूर्ण कृति है। कला आदिम युग से आज तक मनुष्यों की जरूरत रही है और भविष्य में भी रहेगी, पर उन्हें कला की जरूरत क्यों होती है ? आखिर वह कौन-सी बात है जो मनुष्यों को साहित्य, संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला आदि के विभिन्न रूपों में जीवन की पुनर्रचना के लिए प्रेरित करती है ? इस आधारभूत प्रश्न पर विचार करने के लिए लेखक ने आदिम युग से आज तक के और भविष्य के भी मानव-विकास को ध्यान में रखकर सबसे पहले तो कला के काम और उसके विभिन्न उद्गमों पर विचार किया है और फिर विस्तार से इस बात पर प्रकाश डाला है कि मौजूदा पूँजीवादी तथा समाजवादी व्यवस्थाओं में कला की विभिन्न स्थितियाँ किस प्रकार की हैं।
इस विचार-क्रम में वे तमाम प्रश्न आ जाते हैं जो आज सम्पूर्ण विश्व में कला-सम्बन्धी बहसों के केन्द्र में हैं। आज का सबसे विवादास्पद प्रश्न कला की अंतर्वस्तु और उसके रूप के पारस्परिक सम्बन्धों का है। अंर्स्ट फिशर ने इन दोनों के द्वन्द्वात्मक सम्बन्ध को मार्क्सवादी दृष्टि से सही ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझने-समझाने का एक बेहद जरूरी और महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। आज भारतीय साहित्य के अंतर्गत जो जीवंत बहसें चल रही हैं, उनकी सार्थकता को समझने तथा उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ाने में फिशर द्वारा प्रस्तुत विवेचन अत्यधिक सहायक सिद्ध हो सकता है। साहित्य और कला के प्रत्येक अध्येता के लिए वस्तुतः यह एक अनिवार्य पुस्तक है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher |
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