Kanela Ki Katha

-6%

Kanela Ki Katha

Kanela Ki Katha

80.00 75.00

In stock

80.00 75.00

Author: Rahul Sankrityayan

Availability: 2 in stock

Pages: 103

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9788122500806

Language: Hindi

Publisher: Kitab Mahal Publishers

Description

कनैला की कथा

हिन्दी साहित्य में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम इतिहास-प्रसिद्ध और अमर विभूतियों में गिना जाता है। राहुल जी की जन्मतिथि 9 अप्रैल, 1893 ई. और मृत्युतिथि 14 अप्रैल, 1963 ई. है। राहुल जी का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था। बौद्ध दर्शन से इतना प्रभावित हुए कि स्वयं बौद्ध हो गये। ‘राहुल’ नाम तो बाद में पड़ा-बौद्ध हो जाने के बाद। ‘सांकत्य’ गोत्रीय होने के कारण उन्हें राहुल सांकृत्यायन कहा जाने लगा।

राहुल जी का समूचा जीवन घुमक्कड़ी का था। भिन्न-भिन्न भाषा साहित्य एवं प्राचीन संस्कृत-पाली-प्राकृत-अपभ्रंश आदि भाषाओं का अनवरत अध्ययन-मनन करने का अपूर्व वैशिष्ट्य उनमें था। प्राचीन और नवीन साहित्य-दृष्टि की जितनी पकड़ और गहरी पैठ राहुल जी की थी-ऐसा योग कम ही देखने को मिलता है। घुमक्कड़ जीवन के मूल में अध्ययन की प्रवृत्ति ही सर्वोपरि रही। राहुल जी के साहित्यिक जीवन की शुरुआत सन्‌ 1927 ई. में होती है। वास्तविकता यह है कि जिस प्रकार उनके पाँव नहीं रुके, उसी प्रकार उनकी लेखनी भी निरन्तर चलती रही। विभिन्न विषयों पर उन्होंने 150 से अधिक ग्रंथों का प्रणयन किया है। अब तक उनके 130 से भी अधिक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों, निबन्धों एवं भाषणों का गणना एक मुश्किल काम है।

राहुल जी के साहित्य के विविध पक्षों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी पैठ न केवल प्राचीन-नवीन भारतीय साहित्य में थी, अपितु तिब्बती, सिंहली, अंग्रेजी, चीनी, रूसी, जापानी आदि भाषों की जानकारी करते हुए तत्तत्‌ साहित्य को भी उन्होंने मथ डाला। राहुल जी जब जिसके सम्पर्क में गये, उसकी पूरी जानकारी हासिल की। जब वे साम्यवाद के क्षेत्र में गये, तो कार्ल मार्क्स, लेनिन, स्तालिन आदि के राजनीतिक दर्शन की पूरी जानकारी प्राप्त की। यही कारण है कि उनके साहित्य में जनता, जनता का राज्य और मेहनतकश मजदूरों का स्वर प्रबल और प्रधान है।

राहुल जी बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न विचारक हैं। धर्म, दर्शन, लोकसाहित्य, यात्रासाहित्य, इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोश, प्राचीन तालपोथियों का सम्पादन-आदि विविध क्षेत्रों में स्तुत्य कार्य किया है। राहुल जी ने प्राचीन के खण्डहरों से गणतंत्रीय प्रणाली की खोज की। ‘सिंह सेनापति’ जैसी कुछ कृतियों में उनकी यह अन्वेषी वृत्ति देखी जा सकती है। उनकी रचनाओं में प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है। यह केवल राहुल जी थे जिन्होंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य-चिन्तन को समग्रतः आत्मसात्‌ कर हमें मौलिक दृष्टि देने का निरन्तर प्रयास किया है। चाहे साम्यवादी साहित्य हो या बौद्ध दर्शन, इतिहास-सम्मत उपन्यास हो या ‘वोल्गा से गंगा’ की कहानियाँ-हर जगह राहुल जी की चिन्तक वृत्ति और अन्वेषी सूक्ष्म दृष्टि का प्रमाण मिलता जाता है। उनके उपन्यास और कहानियाँ बिलकुल एक नये दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं।

समग्रतः यह कहा जा सकता है कि राहुल जी न केवल हिन्दी साहित्य अपितु समूचे भारतीय वाङ्मय के एक ऐसे महारथी हैं जिन्होंने प्राचीन और नवीन, पौर्वात्य एवं पाश्चात्य, दर्शन एवं राजनीति और जीवन के उन अछूते तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिन पर साधारणतः लोगों की दृष्टि नहीं गई थी। सर्वहारा के प्रति विशेष मोह होने के कारण अपनी साम्यवादी कृतियों में किसानों, मजदूरों और मेहनतकश लोगों की बराबर हिमायत करते दीखते हैं।

विषय के अनुसार राहुल जी की भाषा-शैली अपना स्वरूप निर्धारित करती है। उन्होंने मान्यतः सीधी-सादी सरल शैली का ही सहारा लिया है जिससे उनका सस्पूर्ण साहित्य-विशेषकर कथा-साहित्य-साधारण पाठकों के लिए भी पठनीय और सुबोध है।

‘कनैला’ वस्तुतः राहुल जी का पिठतृग्राम है और ‘कनैला की कथा’ उसका ऐतिहासिक-भौगोलिक चित्रफलक। ईसापूर्व १३वीं शताब्दी में कनैला की स्थिति के बारे में एकदम सन्नाटा है-उस जगह पर क्‍या कुछ था, कहा नहीं जा सकता। बाद के युग में शिंशपा या सिसवा नगर की चर्चा की गई है। “जिस समय (ईसापूर्व सातवीं सदी) की हम बात कर रहे हैं, उस समय की भी धरोहर सिसवा और कनैला की भूमि में जरूर छिपी हुई है। अगर वह सामने आती, तो अपनी मूक भाषा में बहुत-सी बातें बतलाती।” राहुल जी ने कालानुक्रम से कनैला और उसके नगर सिसवा की ऐतिहासिक धरोहर को लघु वृत्तान्तों के माध्यम से स्पष्ट किया है। कनैला की युगानुरूप संस्कृति-सभ्यता, आजीविका, रहन-सहन आदि का यथातथ्य निरूपण इतिहास-सम्मत है और स्वतंत्र भारत के बुद्धिजीवियों के लिए अध्ययन की बुनियाद कहा जा सकता है। १३वीं शताब्दी तक सम्पूर्ण देश पर मुसलमानों का आधिपत्य हो जाता है, कनैला ग्राम भी इससे अछूता नहीं रहा। मुगलों के काल में उस क्षेत्र की सामाजिक स्थिति का बोध ‘सैयद बाबा’ नामक लघु वृत्तान्त से कराया गया है। देश की आज़ादी के लिए हुए १८७५ के संग्राम और आज़ादी मिलने पर कनैला के परम्परागत रीति-रिवाज़ों और लोकतांत्रिक चेतना का खुलासा प्रस्तुत पुस्तक में मैजूद है। दरसल ‘कनैला की कथा’ के माध्यम से लेखक ने भारत के पूर्व-एतिहासिक काल और कालानुक्रम से होने वाले सामाजिक रूपान्तरों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। आशा है, प्रस्तुत पुस्तक विद्वानों और जिज्ञासुओं में पहले की ही तरह समादृत होगी।

 

अनुक्रम

       त्रिवेणी                      १३०० ई० पू०                   

       काशीग्राम                 ७०० ई० पू०

       बड़ी रानी                  २५० ई० पू०

       देवपुत्र                      १०० र्ई० पू०

       कलाकार                  ४३० ई०

       सैयद बाबा                १२१० ई०

       नरमेध                     १५५० ई०

       सन्‌‘ ५७                   १८५७ ई०

       स्वराज्य                    १९५७ ई०

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Kanela Ki Katha”

You've just added this product to the cart:

error: Content is protected !!