Khanabadosh

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Author: Ajeet Kaur

Availability: 3 in stock

Pages: 166

Year: 2020

Binding: Hardbound

ISBN: 9788170167433

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

खानाबदोश

दर्द ही जिंदगी का आखिरी सच है। दर्द और अकेलापन। और आप न दर्द साझा कर सकने हैं, न अकेलापन। अपना-अपना दर्द और अपना-अपना अकेलापन हमें अकेले ही भोगना होता है। फर्क सिर्फ इतना, कि अपनी सलीब जब अपने कंधों पर उठाकर हम जिंदगी की गलियों में से गुज़रे, तो हम रो रहे थे या मुस्करा रहे थे, कि हम अपने ज़ख्मी कंधों पर उठाए अपनी मौत के ऐलान के साथ, लोगों की भीडों से तरस माँग रहे थे, कि उस हालत में भी उन्हें एक शहंशाह की तरह मेहर और करम के तोहफे बाँट रहे थे। दर्द और अकेलापन अगर अकेले ही जाना होता है, तो फिर यह दास्तान आपको क्यों सुना रही हूँ ?

मैं तो जख्मी बाज़ की तरह एक बहुत पुराने, नंगे दरख्त की सबसे ऊपर की टहनी पर बैठी थी—अपने जख्मों से शार्मसार, हमेशा  उन्हें छुपाने की कोशिश करती हुई। सुनसान अकेलेपन और भयानक खामोश से घबराकर यह दास्तान कब कहने लग पड़ी ?

यसु मसीह तो नहीं हूँ दोस्तों, उनकी तरह आखिरी सफर में भी एक नज़र से लोगों की तकलीफों को पोंछकर सेहत का, रहम का दान नहीं दे सकती। पर लगता है, अपनी दास्तान इस तरह कहना एक छोटा-सा मसीही करिश्मा है जरूर ! नहीं ?

पर अब जब इन लिखे हुए लफ्जों को फिर से पढ़ती हूँ तो लगता है, वीरान बेकिनार रेगिस्तान में मैंने जैसे जबरन लफ्जों को यह नागफनी बोई है। पर हर नागफनी के आसपास बेशुमार खुश्क रेत है तो तप रही है, बेलफ़्ज खामोश।

– अजीत कौर

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Binding

Hardbound

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Publishing Year

2020

Pulisher

Language

Hindi

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