Kis Bhugol Mein Kis Sapne Mein: Ashok Vajpayi Ka Gadhya

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Kis Bhugol Mein Kis Sapne Mein: Ashok Vajpayi Ka Gadhya

Kis Bhugol Mein Kis Sapne Mein: Ashok Vajpayi Ka Gadhya

795.00 635.00

In stock

795.00 635.00

Author: Ashok Vajpeyi

Availability: 5 in stock

Pages: 490

Year: 2011

Binding: Hardbound

ISBN: 9789350007037

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

किस भूगोल में किस सपने में

किस भूगोल में किस सपने में एक ऐसा संयोजन है, जिसमें हिन्दी संस्कृति के मूर्धन्य कवि आलोचक अशोक वाजपेयी की विगत पाँच दशकों में फैली सर्जना-यात्रा अपनी सबसे अभिनव, मनोहारी एवं सार्थक रूप में गद्य की भाषा में अन्तर्गुम्फित है। यह पुस्तक एक वरिष्ठ रचनाकार के प्रति एक युवा कवि-अध्येता की ओर से प्रणति निवेदन और आभार ज्ञापन है। अशोक वाजपेयी सपने और सच को लगातार अपने शब्दों से चरितार्थ करने वाले ऐसे रचनाकार के रूप में हिन्दी साहित्य के आकाश में शीर्षस्थ रूप से उपस्थित रहे हैं, जिनकी कविता, आलोचना, संस्कृति-चिन्तन, ललित कलाओं की समीक्षा, युवा विचारोत्तेजना का आकलन, समय और समाज पर कभी-कभार की गयी सामयिक टिप्पणियाँ एवं अपने समय की यथार्थपरक पड़ताल-जिस भूगोल को स्वायत्त करती है, उसका सपना भी निहायत उनकी अपनी जिद, भरोसे और उत्साह से सम्भव हो सका है। अशोक वाजपेयी यहाँ साहित्य पर गम्भीर आलोचनात्मक विमर्श के साथ-साथ अपने समय के ऐसे वरिष्ठ एवं मूर्धन्य कलाकारों, लेखकों एवं संस्कृतिकर्मियों को याद करने में मुब्तिला हैं, जिनका आत्मीय स्मरण भी उच्च कोटि का साहित्य-सृजन ही है।

अज्ञेय, मुक्तिबोध, शमशेर, श्रीकान्त वर्मा, रघुवीर सहाय, निर्मल वर्मा, ब.व. कारन्त, मल्लिकार्जुन मंसूर, कुमार गन्धर्व, सैयद हैदर रज़ा, हबीब तनवीर, केलुचरण महापात्रा, गंगूबाई हंगल, जगदीश स्वामीनाथन, एम.एफ. हुसैन सहित तमाम अप्रतिम उपस्थितियाँ उनके साथ इस पुस्तक में अदम्य गौरव के साथ विचार सक्रिय हैं। साहित्य और कलाओं के जिस भूगोल में अशोक वाजपेयी ने अपना पड़ोस बनाया है और उसमें अपनी रचनात्मकता के लिये सपने देखे हैं, वहाँ यह जानना प्रासंगिक और प्रीतिकर दोनों है कि अपनी प्रखर काव्य-भाषा और जीवनाशक्ति के प्रति अदम्य जिजीविषा के चलते उनकी गद्य रचनाओं में जीवन का हार्दिक उत्सव मनता रहा है। विवक्षा और सृसक्षा से जतनपूर्वक अपना रचना संसार गढ़ने वाले इस रचनाकार के यहाँ परम्परा और आधुनिकता के बीच, अध्यात्म और जीवन के बीच, रिश्तों और सरोकारों के बीच तथा साहित्य और कलाओं के बीच ऐसा उन्मुक्त आवागमन सम्भव हुआ है, जिसे यदि हम किसी स्थापना के तौर पर कहें तो वह बहुलार्थों में सम्भव हुई सांस्कृतिक एकता की पुनर्रचना है। पिछले पचास सालों से अशोक वाजपेयी साहित्य और संस्कृति की दुनिया का ऐसा हार्दिक, अविस्मरणीय, स्वप्नदर्शी एवं मूल्यवान मर्मोद्घाटन कर पा रहे हैं, यह देखना न सिर्फ़ प्रेरक है बल्कि सर्जनात्मक अर्थों में कालजयी भी।

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Hardbound

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Hindi

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2011

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