Mahila Qanun

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Mahila Qanun

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180.00 165.00

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Author: Suresh Ojha

Availability: 5 in stock

Pages: 208

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788189303402

Language: Hindi

Publisher: Vagdevi Parkashan

Description

महिला कानून

प्रस्तावना

कुछ वर्षों से भारतीय जीवनशैली को नारी-विरुद्ध दिखाने का फैशन-सा चल पड़ा है। परंपराओं और रीति रिवाजों में पुरुष की ही प्रधानता दृष्टिगत होती है। इन्हीं रीति-रिवाजों के आधार पर कुछ शोधकर्ता हिंदू जीवन-पद्धति में नारी को समाज में दोयम दर्ज का नागरिक मानने लगे हैं। समाचार पत्रों में आए दिन ऐसी खबरें प्रमुखता से प्रकाशित हो रही हैं कि देश के किसी कोने में किसी पुत्री ने अपने पिता या माता को मुखाग्नि दी है। ऐसी खबरें पाठकों को चौंकाने वाली होती हैं। लोग मान बैठते हैं कि स्त्री-पुरुष बराबरी की कोशिश में स्त्री को एक और कामयाबी हासिल हुई है। नारी बनाम पुरुष में स्त्री ने एक और जंग जीत ली है और नारी/बेटी ने माता-पिता को मुखाग्नि देने का अधिकार प्राप्त कर लिया है।

शास्त्रों में बेटियों द्वारा माता-पिता के निधन पर मुखाग्नि पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वस्तुतः ऐसा करना व्यवहार में नहीं आ पाया कि बेटियां माता-पिता को मुखाग्नि दें।

स्त्री-पुरुष बराबरी की स्थिति सामाजिक इतिहास में खोजना या वर्तमान में भी स्त्री के लिए हर काम में पुरुष के बराबर की बात सोचना भी स्त्रीवादी विचार माना जाता है। स्त्री को हमेशा पुरुष के संरक्षण की क्‍या जरूरत थी ? लड़की को इधर से उधर जाते समय पुरुष का साथ क्‍यों चाहिए था, चाहे वह पुरुष उसका छोटा भाई ही क्यों न हो ? सच तो यह है कि मनुष्य और समाज का विचार और व्यवहार देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। कल तक घूंघट में रह रही औरत आज जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। कुछ क्षेत्रों में तो वह पुरुषों से भी आगे है। सच तो यह है कि बेटियों/ महिलाओं को भी विकास के अवसर मिलने चाहिए। आज भी शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान उन्हें विशेष मानकर ही मिलने चाहिए। एक ओर नारी के विकास की नई दिशाएं ढूंढ़ी जा रही हैं वहीं परंपरा से परिवार और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में मिल रहे सहज सम्मान-सहयोग घट रहे हैं। जैसे रेलों व बसों में महिलाओं को खड़े देख पुरुषों द्वारा अपनी सीट छोड़कर उन्हें ससम्मान बैठाना, सहज व्यवहार मात्र था। आज वह स्थिति व्यवहार में नहीं दिखती, आखिर ऐसा क्‍यों ?

शास्त्रों के अनुसार कहीं भी नारी को द्वितीय श्रेणी का दर्जा नहीं दिया गया है। अभी तक मुश्किल से 10 से 20 प्रतिशत महिलाएं ही अपने अधिकारों को समझ पाई हैं। लोक व्यवहार में 80 प्रतिशत महिलाओं को अभी भी द्वितीय पंक्ति में शुमार किया जाता है।

यद्यपि महिलाओं के उत्थान के लिए केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा महिला आयोगों आदि का गठन किया गया है। समय-समय पर महिलाओं को आगे लाने संबंधी विधेयक भी पारित करवाये गये हैं, परंतु वस्तुस्थिति यह है कि अभी तक नारी-जगत्‌ में जागृति का पूरा संचार नहीं हो पाया है। केंद्र व राज्य सरकारें विधेयक पारित करवाने के साथ महिलाओं के विकास संबंधी विभिन्न कानून बनाकर अपनी इतिश्री समझ लेती हैं। समाज और शासन इसे अपना कर्तव्य मानें और इन कानूनों को लोक व्यवहार का हिस्सा बनाने का ईमानदारी से प्रयास करें।

सुरेश ओझा, एडवोकेट

ए-32, सादुलगंज

बीकानेर, राजस्थान

 

अनुक्रम

  • महिला आयोग
  • राजस्थान सूचना का अधिकार अधिनियम, 2000
  • और सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
  • उद्देश्य, प्रावधान एवं प्रक्रिया
  • विवाह
  • वैवाहिक समस्याएं : विधिक निदान
  • भरण-पोषण
  • घरेलू हिंसा
  • हिंदू पुत्री की हिस्सेदारी
  • दहेज का दानव : कानून का शिकंजा
  • प्रसूति पूर्व परीक्षण के दुरुपयोग का विवरण
  • यौन अपराध
  • यौन उत्पीड़न
  • अनैतिक व्यापार (वेश्यावृत्ति) पर कानून का शिकंजा
  • गर्भ का चिकित्सकीय समापन
  • गिरफ्तार के अधिकार
  • कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस की भूमिका
  • पुरुष के विरुद्ध हिंसा
  • मूल अधिकार
  • गोदनाम (दत्तक-ग्रहण)

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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