Malini Ke Vanon Mein

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Malini Ke Vanon Mein

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695.00 625.00

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695.00 625.00

Author: Srinidhi Siddhantalankar

Availability: 10 in stock

Pages: 295

Year: 2018

Binding: Hardbound

ISBN: 8170436435

Language: Hindi

Publisher: Atmaram and Sons

Description

मालिनी के वनों में
प्रकाशकीय

हिन्दी में जंगल-साहित्य का अत्यन्त अभाव है। जो जंगल-साहित्य उपलब्ध है वह भी स्वस्थ या रोचक नहीं कहा जा सकता। आखेट हमारे उदय और विकास का प्रथम चरण है, पहला अध्याय है। हमने इस पाठ को वनों की गोद में जीव-जन्तुओं और पशु-पक्षियों के साथ सीखा था और इस सहकर्म को हम भूल नहीं सकते, आज भी उसका अपना एक विशेष स्थान है।

प्रस्तुत पुस्तक हमारी जंगल-साहित्य-माला का तीसरा पुष्प है। इसके लेखक श्रीनिधि सिद्धान्तालंकार बीहड़ वनों, वीरान जंगलों, नरभक्षकों और उनके ही सहजातियों के बीच रहे हैं, रहते हैं और उनसे जो कुछ भी सीखा है, देखा या परखा है, उसको उन्होंने साहित्यिक तथा रोचक शैली में ‘मालिनी के वनों में’ में सजा दिया है। यह पुस्तक हिन्दी के पाठकों को भेंट करते हुए हम हर्ष और गर्व का अनुभव करते हैं। गर्व इसलिए कि लेखक का और हमारा परिश्रम हिन्दी के जंगल-साहित्य के एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति करेगा।

‘मालिनी के वनों में’ लेखक की दूसरी पुस्तक है। पहली पुस्तक ‘शिवालक की घटियों में’ प्रकाशित हो चुकी है, जो बहुप्रशंसित हुई तथा पुरस्कृत भी। अपनी इसी पुस्तक में उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण तथा खोजपूर्ण लेख लिखा, जिसमें कण्वाश्रम की विशेष चर्चा की थी। आज से लगभग पैंतीस वर्ष पूर्व श्रीनिधि सिद्धान्तालंकार जब मालिनी के तट पर घूम रहे थे, तब उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण स्थान खोज निकाला, यह था महिर्षि कण्व का आश्रम, जिसका वर्णन हमारे प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। लेकिन आज जो वर्तमान साहित्य हमारे सामने है उसमें कहीं भी इसका स्पष्टीकरण नहीं हो पाता। इस अभाव की पूर्ति के लिए उन्होंने चौथी बार फिर यात्रा की, और सही तथ्य ढूँढ़कर इस महत्त्वपूर्ण स्थान की घोषणा भी कर दी।

यह वही स्थान है जहाँ कण्व-दुहिता का छात्र जीवन व्यतीत हुआ। शाकुन्तल वर्णित मालिनी के इसी सौन्दर्य को लेकर महाकवि कालिदास ने भारत का छः सहस्त्र वर्ष पूर्व का इतिहास लिखा था।

अभी हाल में कण्वाश्रम के इस स्थान के सम्बन्ध में अनेक वाद-विवाद भी हुए; किन्तु श्रीनिधि की स्थापना के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हीं के बताए इस यथार्थ स्थान को स्वीकार कर लिया और वहाँ एक स्मारक की स्थापना भी कर दी गई।

मालिनी के वनों की यात्रा लेखक ने कण्वाश्रम ढूँढ़ने के लिए की थी। किन्तु यात्रा में उन्होंने अनोखे, खट्टे-मीठे अनुभव हुए। भयंकर हिंसक जन्तुओं से मुठभेड़ हुई, तो उन्हें कुछ भग्नावशेष भी प्राप्त हुए। इन सबका मनोरंजक और ज्ञानवर्धक वर्णन उन्होंने इस पुस्तक में किया है।

‘मालिनी के वनों में’ उपन्यास से भी अधिक रोचक और कविता से भी अधिक कोमल भावनाओं को अपने में सँजोये एक अधिकारी विद्वान की बेजोड़ कृति है।

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Binding

Hardbound

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Publishing Year

2018

Pulisher

Language

Hindi

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