Mud Mudke Dekhta Hoon

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Mud Mudke Dekhta Hoon

Mud Mudke Dekhta Hoon

695.00 515.00

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Author: Rajendra Yadav

Availability: 5 in stock

Pages: 203

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126702961

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

मुड़-मुड़के देखता हूँ

यह मेरी आत्मकथा नहीं है ? इन ‘अन्तर्दर्शनों’ को मैं ज़्यादा-से-ज़्यादा ‘आत्मकथ्यांश’ का नाम दे सकता हूँ। आत्मकथा वे लिखते हैं जो स्मृति के सहारे गुज़रे हुए को तरकीब दे सकते हैं। लम्बे समय तक अतीत में बने रहना उन्हें अच्छा लगता है। लिखने का वर्तमान क्षण, वहाँ तक आ पहुँचने की यात्रा ही नहीं होता, कहीं-न-कहीं उस यात्रा के लिए ‘जस्टिफिकेशन’ या वैधता की तलाश भी होती है-मानो कोई वकील केस तैयार कर रहा हो। लाख न चाहने पर भी वहाँ तथ्यों को काट-छाँटकर अनुकूल बनाने की कोशिशें छिपाए नहीं छिपतीं : देख लीजिए, मैं आज जहाँ हूँ, वहाँ किन-किन घाटियों से होकर आया हूँ। अतीत मेरे लिए कभी भी पलायन, प्रस्थान की शरणस्थली नहीं रहा। वे दिन कितने सुन्दर थे…काश, वही अतीत हमारा भविष्य भी होता-की आकांक्षा व्यक्ति को स्मृति-जीवी, निठल्ला और राष्ट्र को सांस्कृतिक राष्ट्रवादी बनाती है।

जाहिर है इन स्मृति-खंडों में मैंने अतीत के उन्हीं अंशों को चुना है जो मुझे गतिशील बनाए रहे हैं। जो छूट गया है वह शायद याद रखने लायक नहीं था; न मेरे, न औरों के….कभी-कभी कुछ पीढ़ियाँ अगलों के लिए खाद बनती हैं। बीसवीं सदी के ‘उत्पादन’ हम सब ‘खूबसूरत पैकिंग’ में शायद वही खाद हैं। यह हताशा नहीं, अपने ‘सही उपयोग’ का विश्वास है, भविष्य की फसल के लिए…बुद्ध के अनुसार ये वे नावें हैं जिनके सहारे मैंने ज़िन्दगी की कुछ नदियाँ पार की हैं और सिर पर लादे फिरने के बजाय उन्हें वहीं छोड़ दिया है।

— भूमिका से

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Hardbound

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Publishing Year

2019

Pulisher

Language

Hindi

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