Namvar Singh Sanchayita

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Namvar Singh Sanchayita

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250.00 210.00

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Author: Nandkishore Naval

Availability: 5 in stock

Pages: 426

Year: 2008

Binding: Paperback

ISBN: 9788126716449

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

नामवर सिंह संचयिता

यह है हिन्दी के ख्यातिप्राप्त आलोचक डॉ. नामवर सिंह के आलोचनात्मक लेखन का उत्तमांश । नामवरजी हिन्दी में मार्क्सवादी आलोचक के रूप में स्वीकृत हैं, लेकिन मूलतः वे एक लोकवादी आलोचक हैं। जिस ‘लोक’ को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने काव्य के प्रतिमान के रूप में व्यवहृत किया था और जिसे आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने क्रांतिकारी अर्थ प्रदान किया, उसे वे मार्क्सवाद की सहायता से ‘वर्ग’ तक ले गए हैं। लेकिन यह उनकी बहुत बड़ी विशेषता है कि उन्होंने मार्क्सवाद को विदेशी, संकीर्ण और रूढ़िबद्ध विचार प्रणाली के रूप में ग्रहण नहीं किया है। सच्चाई तो यह है कि साहित्य के नए मूल्य के लिए उन्होंने प्रत्येक मोड़ पर लोक की तरफ देखा है। अकारण नहीं कि हिन्दी में वे साहित्य की दूसरी परंपरा के अन्वेषक हैं, जो उस लोक की पंरपरा है, जो असंगतियों और अंतर्विरोधों का पुंज होते हुए भी विद्रोह की भावना से युक्त होता है।

नामवरजी की आलोचना हिन्दी में गैर अकादमिक आलोचना व सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। ‘कहानी : नई कहानी’ में उन्होंने व्यक्तिगत निबंध की शैली में आलोचना लिखी, जिसमें बात से बात निकलती चलती है और अत्यन्त सार्थक। ‘कविता के नए प्रतिमान’ उनके विलक्षण परंपरा–बोध, गहन विश्लेषण और पारदर्शी अभिव्यक्ति का स्मारक है। इसी तरह ‘दूसरी परंपरा की खोज’ में उन्होंने ऐसी आलोचना प्रस्तुत की है, जो एक तरफ अतिशय ज्ञानात्मक है और दूसरी तरफ अतिशय संवेदनात्मक। यह सर्जनात्मकता आचार्य द्विवेदी के साहित्य से उनके निजी नगाव के कारण संभव हुआ है। इस वर्ष नामवरजी ने अपने जीवन के पचहत्तर वर्ष पूरे किए हैं। इस अवसर पर यह संचयिता महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की ओर से हिंदी जगत् को दिया गया एक उपहार है, जो उसे पिछली शती के उत्तरार्ध के सर्वश्रेष्ठ हिन्दी आलोचक के अवदान से परिचित कराएगा।

Additional information

Weight 1 kg
Dimensions 21 × 14 × 4 cm
Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2008

Pulisher

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