Nyay Ka Ganit

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Nyay Ka Ganit

Nyay Ka Ganit

250.00 188.00

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250.00 188.00

Author: Arundhati Roy

Availability: 5 in stock

Pages: 227

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 9788126711154

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

न्याय का गणित

किसी लेखक की दुनिया कितनी विशाल हो सकती है इस संग्रह के लेखों से उसे समझा जा सकता है। ए लेख विशेषकर तीसरी दुनिया के समाज में एक लेखक कि भूमिका का भी मानदंड कहे जा सकते हैं। अरुंधति रॉय भारतीय अंग्रेजी की उन वायरल लेखकों में से हैं जिनका सारा रचनाकर्म अपने सामाजिक सरोकार से उपजा है। इन लेखों को पढ़ते हुए जो बात उभरकर आती है वह यह कि वही लेखक वैश्विक दृष्टिवाला हो सकता है जिसकी जड़ें अपने समाज में हों। जिसके सरोकार वही हों जो उसके समाज के सरोकार हैं। यही वह स्त्रोत है जो किसी लेखक की आवाज को मजबूती देता है और नैतिक बल से पुष्ट करता है। क्या यह अकारण है कि जिस दृढ़ता से मध्य प्रदेश के आदिवासियों के हक़ में हम अरुंधति की आवाज सुन सकते हैं, उसी बलंदी से वह रेड इंडियनों या आस्ट्रेलिया के आदिवासियों के पक्ष में भी सुनी जा सकती है। तात्पर्य यह है कि परमाणु बम हो या बोध का मसला, अफगानिस्तान हो या इराक, जब वह अपनी बात कह रही होती हैं, उसे अनसुना-अनदेखा नही किया जा सकता। गोकि वैश्विकता आज एक खतरनाक और डरावना शब्द हो गया है, इस पर भी सही मायने में वह ऐसी विश्व-मानव हैं जिसकी प्रतिबद्धता संस्कृति, धर्म, सम्प्रदाय, राष्ट्र और भूगोल की सीमाओं को लांघती नजर आती हैं।

ये लेख भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान से लेकर सर्वशक्तिमान अमरीकी सत्ता प्रतिष्ठान तक के निहित स्वार्थों और क्रिया-कलापों पर सामान ताकत से आक्रमण करने और उनके जन विरोधी कार्यों को उद्घाटित कर असली चेहरे को हमारे सामने रख देते हैं। अपनी तात्कालिकता के बावजूद ए लेख समकालीन दुनिया का ऐसा दस्तावेज हैं जो भविष्य के इतिहासकारों को इस दौर को वस्तुनिष्ठ तरीके से समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। एक रचनात्मक लेखक के चुतिलेपन, संवेदनशीलता, सघनता व् दृष्टि सम्पन्नता के अलावा इन लेखों में पत्रकारिता की रवानगी और उस शोधकर्ता का-सा परिश्रम और सजगता है जो अपने तर्क को प्रस्तुत करने के दौरान शायद ही किसी तथ्य का इस्तेमाल करने से चुकता हो। यह मात्र संयोग है कि संग्रह के लेख पिछली सदी के अंत और नई सदी के शुरूआती वर्षों में लिखे गया हैं। ए सत्ताओं कि दमन और शोषण कि विश्व्यापी प्रवृत्तियों, ताकतवर की मनमानी व हिंसा तथा नव साम्राज्यवादी मंशाओं के उस बोझ की ओर पूरी तीव्रता से हमारा ध्यान खींचते हैं जो नई सदी के कंधो पर जाते हुए और भारी होता नजर आ रहा है।

अरुंधति रॉय इस आमानुषिक और बर्बर होते खतरनाक समय को मात्र चित्रित नहीं करती हैं, उसके प्रति हमें आगाह भी करती हैं : यह समय मूक दर्शक बने रहने का नहीं है।

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Paperback

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Publishing Year

2021

Pulisher

Language

Hindi

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