Pakistan Diary

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Author: Zahida Hina

Availability: 5 in stock

Pages: 150

Year: 2009

Binding: Paperback

ISBN: 9789352291557

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

पाकिस्तान डायरी

श्री गोपी चन्द नारंग उर्दू के एक जदीद दानिश्वर अदीब और नक्काद हैं। दुनिया उनकी आलमी और अदबी खिदमात का ऐतराफ करती है। मैं इनके नियाज़मंदों में से हूँ। वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी से उन्होंने 2001 में मेरी मुलाकात करायी थी। उस वक्त से अरुण जी और इनके घराने से मेरा गहरा सम्बन्ध है। मुझे इस वक्त दिल्ली की वह शाम याद आ रही है, जब वाणी प्रकाशन के नये दफ्तर में मेरी मुलाकात बाप्सी सिधवा, कमलेश्वर, डॉ. नामवर सिंह, अशोक वाजपेयी, डॉ. निर्मला जैन, ओम थानवी, मन्नू भंडारी और हिन्दी के कई दूसरे नामवर अदीबों और शायरों से हुई थी। एक यादगार मुलाकात! इस वक्त तक अरुण जी मेरा उपन्यास ‘न जुनूं रहा न परी रही’ प्रकाशित कर चुके थे, पर अब, दैनिक भास्कर में छपने वाले मेरे कॉलमों का संग्रह भी इनके प्रकाशन से छपने जा रहा है। इसकी भी एक कहानी है। लगे हाथों वह भी सुन लीजिये। वह जनवरी 2005 की कोई तारीख थी, जब भोपाल से मेरे पास राज कुमार केसवानी का फोन आया। वह मुझसे दैनिक भास्कर में हर हफ्ते ‘पाकिस्तान डायरी’ लिखने की बात कह रहे थे। मुझे यूँ महसूस हुआ जैसे वह मुझसे कह रहे हों कि सियासत पर तो बहुत कुछ छपता रहा है, लेकिन करोड़ों की तादाद में तो वे लोग हैं, जो एक दूसरे के सुख-दुख समझना चाहते हैं, जिनके रिश्ते एक-दूसरे से हैं, जिनके इतिहास और जिनके रस्म-ओ-रिवाज का आज भी बँटवारा न हो सका। सिंघ है जिसकी सरहदें राजस्थान से जुड़ी हैं, दोनों तरफ का पंजाब है, उर्दू बोलने वाले हैं, जो हिंदुस्तान के हर कोने से आये हैं। ये लोग एक-दूसरे के साथ अमन चैन से रहना चाहते हैं। इस वक्त मुझे युनाइटेड नेशन के आँगन में रखा हुआ पिस्तौल का मुज्समा याद आया, जिसकी नाल को शिल्पकार ने गिरह लगा दी है। मुझे ख्याल आया कि मैं अपने शब्दों से किसी एक बंदूक की नाल को भी गिरह लगा दूँ तो समझूगी कि जिन्दगी सफल हो गयी। 1979 के कराँची में पाक-हिन्द प्रेम सभा कायम करने वाले चंद लोगों में से एक मैं भी थी। उस वक्त से आज तक मैंने हमेशा अपने ख़ते में अमन और इन्साफ़ के लिए लिखा है। और अब केसवानी जी मुझे यह मौका दे रहे थे कि अब मैं अपनी तरह सोचने वालों की बात को हिन्दुस्तान के शहरों कस्बों और देहातों तक फैलाऊँ। मेरे लिए इससे बड़ी बात भला क्या हो सकती थी। उस वक्त से अब तक एक साल गुजर चका है, ‘दैनिक भास्कर’ में हर हफ्ते ‘पाकिस्तान डायरी’ छपती है और इसको पढ़ने वाले मुझे दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद में मिलते हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के घर के लॉन पर चाय का लुत्फ उठाते हुए और वहाँ राजस्थान के एक अस्सी साला मेहमान अदीब श्री विजयदान देथा मुझे पहचान रहे हैं, मेरे लेखन की दाद दे रहे हैं और मेरा सर उनके आशीर्वाद से झुक रहा है। बचपन में हम सब भी चाँद तक पहुँचने के लिए दिल ही दिल में कैसी सीढ़ियाँ बनाते हैं, ‘दैनिक भास्कर’ में छपने वाली ‘पाकिस्तान डायरी’ भी एक ऐसी ही सीढ़ी है, जिसे मैंने शब्दों से बनाया है और इस पर से होकर हिन्दुस्तानी जनता के दिलों में उतरने की कोशिश की। उन्हें बताना चाहा है कि आपके और हमारे दु:ख एक जैसे हैं। इन दु:खों से निबटने का एक ही तरीका है कि हर बंदूक की नाल में हम गिरह लगा दें और तोप की नाल में एक फाख्ता रख दें- अमन की फाख्ता। ‘पाकिस्तान डायरी’ अगर किताब की शक्ल में आप तक पहुँच रही है। तो इसका श्रेय अरुण माहेश्वरी को जाता है जो इतवार के रोज उसे पढ़ते हैं और खुश होते हैं और अब उन्होंने दूसरों को भी इस खुशी में शामिल करने का फैसला किया है।

– ज़ाहिदा हिना

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2009

Pulisher

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