Premmurti Bharat

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Author: Sriramkinkar Ji Maharaj

Availability: 5 in stock

Pages: 226

Year: 2015

Binding: Paperback

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Ramayanam Trust

Description

प्रेममूर्ति भरत

अनुक्रम

★       भरत महा महिमा सुनु रानी…

★       अनुवचन

★       अमृत-मंथन

★       राम प्रेम मूरति तनु आही

★       पेम अमिअ मन्दर बिरहु…

★       साहित्य सूची

 

।। श्री रामः शरणं मम ।।

भरत महा महिमा सुनु रानी…

‘प्रेम मूर्ति भरत’ के प्रकाशन की छठी आवृत्ति के असर पर मैं कुछ लिखूं ऐसा आग्रह मुझसे किया गया है। श्री भरत के चरित्र के सन्दर्भ में महाराज जनक का यह वाक्य जिसमें वे ‘भरत भरत सम जानि’ कहते हैं अतिशयोक्ति या स्तुतिपरक ही नही हैं वह एक ऐसा यथार्थ है जिसका अनुभव मुझे निरन्तर होता रहा है और हो रहा है।

प्रवचनों की सुदीर्घ अवधि में श्री भरत चरित्र को केन्द्र बना कर कितने प्रवचन मेरे माध्यम से हुए हैं इसकी गणना मैंने नहीं की। पर वह संख्या कम से कम 350 होगी ऐसी मेरी धारणा है। सर्वदा श्रोताओं ने रस विभोर होकर उसका आनन्द लिया है; किन्तु मैंने श्रोताओं से भी अधिक सुखानुभूति की है ऐसा कहूँ तू इसे आत्म स्तुति के रूप में देखना उपयुक्त नहीं होगा। इस अन्तर का कारण यही है कि मैंने भरत चरित्र को ‘कहा’ ही नहीं ‘सुना’ भी है। और आशचर्यचकित होता रहा हूँ। प्रभु ने प्रत्येक बार मुझे नए-नए भरत का दर्शन कराया है। और तब मन में यही पंक्ति में गुनगुना लेता हूँ।

निरवधि गुण निरुपम पुरुष भरत भरत सम जानि।

कहिय सुमेरु कि शेर सम कवि कुल मति सकुचानि।। 2/288

प्रकाशनों की श्रृंखला में भी कई ऐसी पुस्तकें हैं जिनमें भी भरत के अनन्त आयाम चरित्र के कुछ पक्षों का उद्धाटन हुआ है। यदि मेरे माध्यम से हुए सभी प्रवचनों को प्रकाशित किया जाता तो पाठक यह पढ़कर चकित हो जाता कि उनमें कितनी भिन्नता है। किन्तु यह नित नूतनता मेरी प्रतिभा का परिचायक नहीं है वस्तुत: राजर्षि जनक के कह दिया भरत की महिमा का बखान तो श्री राम भी नहीं कर सकते।

भरत महा महिमा सुनु रानी।

जानहिं राम न सकहिं बखानो।। 2/288/2

तब मेरी प्रतिभा का क्या अर्थ है।

‘जेहि मारुत गिरि मेरु उड़ाही

कहहु तूल केहि लेखे माहीं।’

फिर भी जो कहा गया जो लिखा गया, वह भी तो उस करुणामय राघव की प्रेरणा का ही परिणाम है।

‘प्रेम मूर्ति भरत’ प्रवचन के माध्यम से नहीं लेखन के माध्यम से सामने आया। संभवतः उस समय मेरी आयु 19 वर्ष रही होगी। इसके लेखन के समय जिस भावस्थिति में स्वयं को पाता था उसकी स्मृति आज भी विह्वल बना देती है। श्री भरत की अवध से चित्रकूट की यात्रा में मैं प्रतिक्षण उनके साथ था। प्रेम सिन्धु भरत की भावना लहरियों का एक कण मुझे रससिक्त कर देता था।

सुदीर्घ अवधि में जब कई ग्रन्थों के प्रकाशन हो चुके हैं। ‘प्रेममूर्ति भरत’ की माँग बनी ही रहती है यह श्री भरत प्रेम की महिमा ही तो है।

सुमिरत भरतहिं प्रेम राम को।

जेहि न सुलभ तेहि सरसि बाम को। 2/303/3

– रामकिंकर

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2015

Pulisher

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