Raagbodh Aur Ras

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Raagbodh Aur Ras

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100.00 85.00

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100.00 85.00

Author: Vidyaniwas Mishra

Availability: 5 in stock

Pages: 116

Year: 2003

Binding: Hardbound

ISBN: ‎ 9788181430151

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

रागबोध और रस

एक उदाहरण स्वप्नवासवदत्त के पंचम अंक से राजा ने सुना था कि पद्मावती कुछ अस्वस्थ है और इसी जगह होगी। आते हैं तो देखते हैं शय्या सूनी पड़ी है। पर उन्हें शय्या को देखने पर लगता है कि कोई यहाँ सोया नहीं था क्योंकि शय्या बिलकुल समतल पड़ी है। कहीं चादर में सिलवट नहीं पड़ी है। कहीं सिर दर्द दूर करने के लिए लगाए गए लेप का निशान तकिया पर नहीं पड़ा हुआ है। इसी प्रसंग में विदूषक कहता है कि आप यहीं प्रतीक्षा करें। पद्मावती आती ही होगी। विदूषक से राजा कहते हैं, कहानी सुनाओ, ताकि नींद आ जाए। विदूषक कहानी शुरू करता है। उज्जयिनी से शुरू करता है। उज्जयिनी का नाम सुनते ही राजा को वासवदत्ता याद आती है। विदूषक कहता है, अच्छा दूसरी कहानी शुरू करता हूँ, ब्रह्मदत्त नाम का राजा है। काम्पिल्य नाम की नगरी है। राजा सुधारता है-मूर्ख, राजा काम्पिल्य, नगर ब्रह्मदत्त। विदूषक ने इसी को कई बार रटना चाहा। इतने में राजा को नींद आ जाती है। विदूषक अपनी उत्तरीय कन्धे पर ओढ़कर हट जाता है। इतने में वासवदत्ता पद्मावती की अस्वस्थावस्था सुनकर समुद्रगृह आती है। वासवदत्ता उस शय्या पर लेट जाती है और उसे लगता है कि शय्या पर लेटते ही उच्छ्वास होता है। इतने में स्वप्न में राजा वासवदत्ता को पुकारते हैं। पहले वासवदत्ता घबड़ाती है कि कहीं यौगन्धरयण की प्रतिज्ञा विफल नहीं हो जाय। पर राजा स्वप्न में बड़बड़ाता है तो वासवदत्ता को तसल्ली हो जाती है कि राजा सो रहे हैं। मैं थोड़ी देर यहाँ रुक सकती हूँ और अपने हृदय को परितोष दे सकती हूँ। राजा स्वप्न में ही कहते हैं कि “हे प्रिये, मेरी बात सन रही हो तो उत्तर दो।” वासवदत्ता विहल होकर कहती है- “मैं बोल रही हूँ, मैं बोल रही हूँ”। राजा के मुँह से निकलता है-“नाराज हो” । वासवदत्ता-‘नहीं नहीं’ मैं दुःखी हूँ। “वासवदत्ता, यदि नाराज नहीं हो तो तुमने गहने क्यों उतार दिए”। यही प्रलाप का उत्तर चलता ही रहता है कि वासवदत्ता सोचती है कि जब तक कोई नहीं आता, तब तक मैं खिसक जाऊँ। आर्यपुत्र का हाथ जो शय्या से नीचे लटक रहा है, शय्या पर पुनः रखकर खिसक जाऊँ। इतने में राजा उठ जाते हैं और बोलते हैं. “वासवदत्ता, ठहरो, ठहरो। मैं उठा और घबड़ाहट में दरवाजे से टकरा गया। इसलिए नहीं जान पाया कि मेरी आकांक्षा का मूल रूप वासवदत्ता ही मिली थी या नहीं”। यह पूरा प्रसंग स्वप्नवासवदत्ता नाम को सार्थक करता है और राजा (उदयन) के भीतर के गहरे द्वन्द्व को रेखांकित करता है। पद्मावती से उसका विवाह राजनैतिक उद्देश्य से रचाया गया है।

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Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2003

Pulisher

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