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Description
रेशमी ख्वाबों की धूप छाँव
यश चोपड़ा जीवन के अठहत्तर वसंत पार कर आज भी रूमान के जादूगर हैं। उन्होंने हिन्दी सिनेमा में तीन पीढ़ियों के साथ सफर किया है। जब यश चोपड़ा ने अपनी रचना-यात्रा शुरू की तब महबूब, बिमलराय, राजकपूर, गुरुदत्त, विजय आनन्द वगैरह का गौरवगान था और अब वे सूरज बड़जात्या, करन जौहर, संजय लीला भंसाली, राम गोपाल वर्मा और आशुतोष गोवारीकर जैसे फिल्मकारों की पीढ़ी के साथ सृजनरत हैं। इस पीढ़ी के साथ सफर करते हुए उन्होंने ‘डर’, ‘दिल तो पागल है’ और ‘वीर जारा’ जैसी फिल्में बनाई हैं जिनसे वे सिर्फ रोमान के बादशाह ही साबित नहीं हुए – वरन् नई पीढ़ी के साथ इस तरह खड़े हुए कि उसके मार्गदर्शक भी बन गए हैं। पर हमारे इस आख्यान के कथानायक मात्र ‘निर्देशक’ यश चोपड़ा हैं। वे फिल्म निर्देशक होने के साथ ही और भी बहुत कुछ हैं। फिल्म-निर्माता से लेकर स्टूडियो के मालिक तक और अब फिल्मोद्योग के एक एम्बेसेडर की तरह भी उन्हें देखा जा सकता है। इन तमाम रूपों के बीच से यह सिर्फ उस यश चोपड़ा का किस्सा है जिसने 1959 से 2004 के बीच पैंतीस सालों में इक्कीस फिल्मों का निर्देशन किया और अपने जीवनकाल में ही अपनी विरासत को अगली पीढ़ी के हाथों सौंप दिया और उसे अपने जमाने से भी अधिक फलता-फूलता देख रहे हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2011 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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