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Description
ऋणजल धनजल
सन् 1966 का भयानक सूखा – जब अकाल की काली छाया ने पूरे दक्षिण बिहार को अपनी लपेट में ले लिया था और शुष्कप्राण धरती पर कंकाल ही कंकाल नजर आने लगे थे…और सन् 1975 की प्रलयंकर बाढ़ – जब पटना की सड़कों पर वेगवती वन्या उमड़ पड़ी थी और लाखों का जीवन संकट में पड़ गया था… अक्षय करुणा और अतल-स्पर्शी संवेदना के धनी कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु प्राकृतिक प्रकोप की इन दो महती विभीषिकाओं के प्रत्यक्षदर्शी तो रहे ही, बाढ़ के दौरान कई दिनों तक एक मकान के दुतल्ले पर घिरे रह जाने के कारण भुक्तभोगी भी। अपने सामने और अपने चारों ओर मानवीय विवशता और यातना का वह त्रासमय हाहाकार देखकर उनका पीड़ा-मथित हो उठना स्वाभाविक था, विशेषतः तब, जब कि उनके लिए हमेशा ‘लोग’ और ‘लोगों का जीवन’ ही सत्य रहे।
आगे चलकर मानव-यातना के उन्हीं चरम साक्षात्कार-क्षणों को शाब्दिक अक्षरता प्रदान करने के क्रम में उन्होंने संस्मरणात्मक रिपोर्ताज़ लिखे, और उन्हीं का संकलित रूप यह ऋणजल धनजल है। इसमें वस्तुतः व्यापक मानवीय पीड़ाबोध की वह ‘अकथ कथा’ वर्णित है जो अक्षरशिल्पी रेणु की विलक्षण अन्तर्भेदी दृष्टि और लेखनी का संस्पर्श पाकर सहज ही शब्दचित्रात्मक और आश्चर्यजनक रूप से जीवन्त हो उठी है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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