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Description
सब संभव है
भारतीय मनीषियों ने तन-मन और आत्मा इन तीनों पर विस्तार से विचार किया है। वे शरीर को रथ कहते हैं, बुद्धि को सारथी और आत्मा को उस पर बैठा हुआ रथी। आत्मा इन सबका स्वामी है। संकेत यह है कि रथ, घोडों और सारथी की सहायता से लक्ष्य पर रथी संधान करता है अर्थात् सही लक्ष्य संधान के लिए इन सबका परस्पर सहयोग आवश्यक है।
आजकल ’सेल्फ इंप्रूवमेंट’ से संबधित पुस्तकों का अच्छा-खासा बाजार है। इस संबंध में बहुत कुछ परोसा भी जा रहा है, लेकिन उसमें उचित संतुलन नहीं हैं। आत्मा की तो बात ही नहीं की जाती। पढ़ा-लिखा और समझदार कहलाने वाला व्यक्ति भी मन से आगे ’सूक्ष्म चेतना’ के रूप में और कुछ मानने को तैयार नहीं है। प्रमुख रूप से शरीर, और थोडा-बहुत मानसिक-बौद्धिक सौंदर्य तथा विकास इसमें समाहित है। सूक्ष्म स्तर पर क्योंकि परिमार्जन नहीं होता, इसीलिए जब कुछ ऐसा बाहर प्रकट होता है, जो अमानवीय है, असामाजिक है, लोकमर्यादा के विरुद्ध है, तब उसके कारणों की सही पकड़ नहीं हो पाती।
सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारणों की ओर अक्सर लोगों की नजर होती है, लेकिन समान स्थितियों-परिस्थितियों में लोग एक समान व्यवहार क्यों नहीं करते हैं, इसका सही उत्तर नहीं है किसी के पास। इसी संदर्भ में नैतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से निवेदन करने की आवश्यकता हुआ करती है। इस दृष्टि से ’सेल्फ’ को परिभाषित करने की आवश्यकता है।
पूज्य स्वामी जी का संबंध धर्म और अध्यात्म के साथ है। इन दोनों में सभी सिद्धांत और व्यवहार सिमट जाते हैं, इसलिए भौतिक समृद्धि तथा शांति के लिए भी उन्होंने अपने प्रवचनों में बहुत कुछ कहा है। इस पुस्तक में व्याख्यान के उन्हीं अंशों को प्रस्तुत किया है, जो सीधे जीवन में सफलता के मार्ग को प्रशस्त करते हैं। यदि यह कहा जाए कि नए लेबल में पुरानी शरबत को देने का प्रयास किया गया है, तो अतिशयोक्ति न होगी।
आशा है, ये छोटे छोटे सूत्र आपके मार्ग को प्रशस्त करेंगे। ध्यान रहे, सफलता भौतिक हो या आध्यात्मिक-दोनों में समान नियम कार्य करते हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
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