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Description
सृष्टि पर पहरा
केदारनाथ सिंह का यह नया संग्रह कवि के इस विश्वास का ताजा साक्ष्य है कि अपने समय में प्रवेश करने का रास्ता अपने स्थान से होकर जाता है। यहाँ स्थान का सबसे विश्वसनीय भूगोल थोड़ा और विस्तृत हुआ है, जो अनुभव के कई सीमांतों को छूता है। इन कविताओं में कवि की भाषा और पारदर्शी हुई है और संवादधर्मी भी।
संग्रह की लम्बी कविता ‘मंच और मचान’ इस दृष्टि से उल्लेखनीय है कि यहाँ कटते हुए वृक्ष के विरुद्ध एक व्यक्ति (चीना बाबा) का प्रतिरोध ‘घर’ के लिए आदमी के बुनियादी संघर्ष का रूपक बन जाता है। यहाँ तुच्छ कीचड़ भी दुनिया बचाने के लिए सक्रिय दीखता है और घास की एक छोटी-सी पट्टी भी बैनर उठाये हुए मैदान में कड़ी है। पानी,कपास, लकड़ी और धुल जैसी छोटी-छोटी चीजों की बेचैनी से भरी ये कविताएँ कोई दावा नहीं करतीं। वे सिर्फ आपसे बोलना-बतियाना चाहती हैं-एक ऐसी भाषा में जो जितनी इनकी है उतनी ही आपकी भी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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