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स्त्री अस्मिता और समकालीन कविता
स्त्री केंद्रित रचनाओं पर आरोप व प्रत्यारोप कुछ भी हो, इस धारा का लेखन सिर्फ मार्केटिंग वेल्यू पर निर्भर नहीं होता। हर युग व समय के लेखन के समान उसमें भी अपवाद और विकल्प होते हैं।
स्त्री लेखन या स्त्री विशेषण से युक्त सभी चीजों के बाहर-भीतर की जांच एवं चयन में हर इंसान की निजी रुचियों का बड़ा महत्त्व है। कोई स्त्री विशेषण से मुड़कर भागता होगा तो कोई महज स्त्री विशेषण के लोभ में चीजें आत्मसात करता होगा। अतिवादी, उदारवादी, विरोधवादी, शेवनिस्टिक नजरियों के सम्मेलन में मिलने वाले व्यापक परिसर में खुद के तात्पर्य के आधार पर स्त्री चिंतन की राहें तय करना गतिशील इंसान का काम है।
वह आजाद होकर, लिंग सहित तमाम भेदभावों के परे रहकर, कविता को देखने का प्रयास कर सकता है। सच यह है कि तब भी, कविता का स्त्रीत्व, अपनी पहचान और अस्तित्व को खोलता हुआ प्रस्तुत होता है। क्योंकि इतिहास में काफी समय से व्यवहृत होते आए कई भेदभावों में ‘लिंग विवेचन’ का प्रथम स्थान है। काल, समय, क्षेत्र व समुदाय के अनुसार उपयुक्त शोषण विधियों में थोड़ा अंतर है। इसलिए कविता की मानवीय संवेदना को स्त्री लिंग-स्तर की मान लेने से इस अध्ययन की गतिशीलता बढ़ी है। मनुष्य की संवेदना में कविता का स्थान है तो, उसमें स्त्री आत्मा की संवेदना भी दर्ज है।
यहां पर कविता में उपलब्ध स्त्री अस्मिता, लिंग संवेदना, पारिस्थितिकी, मानवीय संकट, समय-कल आदि को समकालीन परिसर में देखने का प्रयास है … और यह प्रयास जारी रहेगा।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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