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Description
स्त्री की नज़र में रीतिकाल
रीतिकाल अब विमर्श के केन्द्र में आ गया है। हिन्दी साहित्य के इतिहास में किसी अन्य युग को ऐसा तिरस्कार नहीं झेलना पड़ा जैसा रीतिकाल को। रीतिकाव्य की श्रृंगार और नायिका-भेद वाली विषय-वस्तु के कारण वह नैतिकतावादियों का आसान शिकार बन गया। स्त्री-केन्द्रित इस श्रृंगार-काव्य के रचनाकार सभी पुरुष हुए। मज़े की बात है इस कविता के आलोचक भी पुरुष हुए।
रीतिकालीन कविता पर स्त्री साहित्यकारों की टिप्पणियाँ बहुत कम मिलती हैं। यह पुस्तक रीतिकाल पर स्त्री के विचारों को सामने लाने का पहला प्रयास है। इसलिए इसका ऐतिहासिक महत्त्व है। इसमें एक तरफ़ स्त्री-विमर्श से उपजे आलोचना के नये तेवरों से मुठभेड़ होगी तो दूसरी तरफ़ रीतिकाल-सम्बन्धी पारम्परिक आलोचना के दर्शन भी होंगे।
Additional information
| Authors | |
|---|---|
| Binding | Hardbound |
| ISBN | |
| Pages | |
| Publishing Year | 2020 |
| Pulisher | |
| Language | Hindi |











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