Sunhu Taat Yah Akath Kahani

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Sunhu Taat Yah Akath Kahani

Sunhu Taat Yah Akath Kahani

150.00 128.00

In stock

150.00 128.00

Author: Shivani

Availability: 9 in stock

Pages: 114

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 9788183611596

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

सुनहु तात यह अकथ कहानी

सुनहु तात यह अकथ कहानी में शिवानी ने अपनी ही जिन्दगी में झाँक कर देखा हैं। ये संस्मरण हैं जो आत्मकथा के रूप में लिखे गए हैं। इसमें उनके घर-परिवार के लोग हैं। कई पीढ़ियों से सीधा साक्षात्कार हो जाता है। इसमें और भी बहुत से दूसरे लोग हैं, उनसे जुड़ी रोचक और मार्मिक कहानियाँ हैं। कुछ घटनाएं और प्रसंग तो ऐसे हैं कि पढ़कर दिल दहल जाता है।

इसी नाम में समाज ,रीति-रिवाज, संस्कृति, धार्मिक भावनाओं और विश्वासों-अंधविश्वासों को कहानी के साथ गूंथ कर अधिक सशक्त बना दिया है। इसके साथ ही इसमें शिवानी के पति और बड़ी बहिन तथा साहित्यकार अमृतराय के मर्मस्पर्शी संस्मरणों के साथ दो अन्य प्रेरच रचनाएं भी दी गई है। इस बार इस पुस्तक में शिवानी के परिजनों तथा आत्मीय जनों के फोटो भी दिए गए हैं।

 

एक

तुलसीदासजी ने जिस सन्दर्भ में भी यह पंक्ति लिखी हो, जो लिखने जा रही हूँ, उस सन्दर्भ में मुझे यह एकदम सटीक लगती है-

सुनहु तात यह अकथ कहानी

समुझत बनत, न जाय बख़ानी।

अभी कुछ ही दिन पूर्व मेरी एक प्रशंसिका पाठिका ने मुझसे अनुरोध किया था कि मैं अपनी आत्मकथा लिखू, ‘समय आ गया है शिवानीजी, कि आप अपने सुदीर्घ जीवन के अनुभवों का निचोड़ हमें भी दें, जिससे हम कुछ सीख सकें।

पर यह क्या इतना सहज है? जीवन के कटु अनुभवों को निचोड़ने लगी, तो न जाने कितने दबे नासूर फिर से रिसने लगेंगे; और फिर एक बात और भी है। मेरी यह दृढ़ धारणा है कि कोई भी व्यक्ति भले ही वह अपने अन्तर्मन के लौह कपाट बड़े औदार्य से खोल अपनी आत्मकथा लिखने में पूरी ईमानदारी उड़ेल दे, एक-न-एक ऐसा कक्ष अपने लिए बचा ही लेता है, जिसकी चिलमन उठा तांक-झाँक करने की धृष्टता कोई न कर सके। सड़ी रूढ़ियों और विषाक्त परम्पराओं से जूझते-जूझते जर्जर जीवन आसन्न मृत्यु के भय से इतना क्लांत हो जाता है कि अतीत को एक बार फिर खींच दूसरों को दिखाने की न इच्छा ही शेष रह जाती है, न अवकाश।

जिनके दौर्बल्य को बहुत निकट से देखा है, जिनके सहसा बदल गए व्यवहार ने जीवन के अन्तिम पड़ाव में कई बार आहत किया है, उनके विषय में कुछ लिखने का अर्थ ही है रिसते घावों को कुरेद स्वयं दुखी होना। इतना अवश्य है कि नारी बनाकर विधाता ने नारी के अनेक रूपों को देखने-परखने का प्रचुर अवसर दिया है; उसकी महानता, उसकी क्षुद्रता देख कभी-कभी दंग रह गई हूँ, क्या नारी भी ऐसी नीचता पर उतर सकती है? नारी-क्षुद्रता का अहंकार जितना ही प्रचंड होता है, उतना ही प्रचंड होता है उसका दिया आघात।

मैंने इस सुदीर्घ जीवन में क्षणिक जय-पराजय का स्वाद भी चखा है, निर्लज्ज मिथ्याचारिता का रहस्य भी कुछ-कुछ समझने लगी हूँ। इसी क्षुद्रता, मिथ्याचारिता के प्रतिरोध का उद्दाम संकल्प मुझे एक नित्य नवीन प्राणदायिनी शक्ति भी प्रदान कर जाता है। न अब मुझे किसी आत्मघाती मूढ़ता का भय रह गया है, न सत्य को उजागर करने में संकोच।

वर्षों पूर्व पन्ना के राजज्योतिषी ने मेरा हाथ देखकर कहा था, “तुम एक दिन राजमाता बनोगी, यदि नहीं बनी तो मैं समझूगा, सब शास्त्र मिथ्या हैं। तुम्हारे वामहस्त की रेखा दुर्लभ है, किन्तु अन्त तक, तुम्हारे भाग्य को अदृष्ट का कंटक-व्याल डँसता रहेगा। जिस पर भी अपना सर्वस्व लुटाने को तत्पर रहोगी, उसी की प्रवंचना तुम्हें एक न एक दिन अवश कर देगी।” तब उस भविष्यवाणी को हँसकर ही उड़ा दिया था। उस अदृष्ट व्याल की फूत्कार को कभी भुला नहीं पाई। न जाने कब डँस ले?

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2021

Pulisher

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