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Description
तीन महारथियों के पत्र
प्रेमचन्द के बाद जिन लेखकों का सम्बन्ध ग्राम जीवन से था और जिनके उपन्यास खूब पढ़े गये, उनमें वृन्दावनलाल वर्मा का स्थान सबसे ऊपर है। हिन्दी के वह सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक उपन्यासकार हैं। अक्सर देखा जाता है कि अतीत का चित्रण करते हुए कथाकार पुनरुत्थानवादी दृष्टिकोण अपनाते हैं।
बनारसीदास चतुर्वेदी ने ‘प्रवासी भारतवासी’ पुस्तक लिखी थी। जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने क्रान्तिकारियों और शहीदों पर बहुत से साहित्य के प्रकाशन का आयोजन किया था। फिर भी उनकी ख्याति का मूल कारण उनके द्वारा ‘विशाल भारत’ का सम्पादित किया जाना था। द्विवेदी जी के बाद शायद वह सबसे प्रभावशाली सम्पादक थे। और किशोरीदास वाजपेयी हिन्दी के अन्यतम भाषाशास्त्री थे। देशी-विदेशी विद्वानों की लीक से हट कर उन्होंने भाषा के विवेचन का नया रूढ़िमुक्त मार्ग प्रशस्त किया।
लेखक उपरोक्त तीनों महान लेखकों के कृपापात्र थे। उसी के फलस्वरूप इनसे अनेक पत्र प्राप्त हुए। इन पत्रों से इन महानुभावों के जीवन और साहित्य के बारे में बहुत सी बातें जानी जा सकती हैं। इसके सिवा हिन्दी भाषा और साहित्य के इतिहास की भी बहुत सी बातें उनके पत्रों में मिलेंगी। अपने-अपने ढंग के ये लेखक अच्छे शैलीकार भी हैं। ऐतिहासिक महत्त्व के अलावा अपनी शैली के कारण ये पत्र पढ़ने वालों को रुचिकर लगेंगे, ऐसा हमारा विश्वास है।
Additional information
| Authors | |
|---|---|
| Binding | Hardbound |
| ISBN | |
| Language | Hindi |
| Publishing Year | 1997 |
| Pages | |
| Pulisher |











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