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Description
वे दिन
इतिहास निर्मल वर्मा के कथा-शिल्प में उसी तरह मौजूद रहता है, जैसे हमारे जीवन में लगातार मौजूद लेकिन अदृश्य। उससे हमारे दुख और सुख तय होते हैं, वैसे ही जैसे उनके कथा-पात्रों के। कहानी का विस्तार उसमें बस यह करता है कि इतिहास के उन मूक और भीड़ में अनचीन्हे ‘विषयों’ को एक आलोक-वृत्त से घेरकर नुमायाँ कर देता है, ताकि वे दिखने लगें, ताकि उनकी पीड़ा की सूचना एक जवाबी सन्देश की तरह इतिहास और उसकी नियन्ता शक्तियों तक पहुँच सके।
इस उपन्यास के पात्र, निर्मल जी के अन्य कथा-चरित्रों की तरह सबसे पहले व्यक्ति हैं, लेकिन मनुष्य के तौर पर वे कहीं भी कम नहीं हैं, बल्कि बढ़कर हैं, किसी भी मानवीय समाज के लिए उनकी मौजूदगी अपेक्षित मानी जाएगी। उनकी पीड़ा और उस पीड़ा को पहचानने, अंगीकार करने की उनकी इच्छा और क्षमता उन्हें हमारे मौजूदा असहिष्णु समाज के लिए मूल्यवान बनाती है। वह चाहे रायना हो, इंदी हो, फ्रांज हो या मारिया, उनमें से कोई भी अपने दुख का हिसाब हर किसी से नहीं माँगता फिरता। चेकोस्लोवाकिया की बर्फ़-भरी सड़कों पर अपने लगभग अपरिभाषित प्रेम के साथ घूमते हुए ये पात्र जब पन्नों पर उद्घाटित होते हैं, तो हमें एक टीसती हुई-सी सान्त्वना प्राप्त होती है, कि मनुष्य होने का जोख़िम लेने के दिन अभी आ चुक नहीं गये।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Pulisher | |
Publishing Year | 2023 |
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