Ve Pandrah Din

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Ve Pandrah Din

Ve Pandrah Din

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Author: Prashant Pole

Availability: 10 in stock

Pages: 184

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9789387968615

Language: Hindi

Publisher: Prabhat Prakashan

Description

उन पंद्रह दिनों के प्रत्येक चरित्र का, प्रत्येक पात्र का भविष्य भिन्न था। उन पंद्रह दिनों ने हमें बहुत कुछ सिखाया।
माउंटबेटन के कहने पर स्वतंत्र भारत में यूनियन जैक फहराने के लिए तैयार नेहरू हमने देखे। लाहौर अगर मर रहा है, तो आप भी उसके साथ मौत का सामना करो। ऐसा जब गांधीजी लाहौर में कह रहे थे, तब राजा दाहिर की प्रेरणा जगाकर, हिम्मत के साथ, संगठित होकर जीने का सूत्र उनसे मात्र 800 मील की दूरी पर, उसी दिन, उसी समय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्रीगुरुजी हैदराबाद (सिंध) में बता रहे थे।

कांग्रेस अध्यक्ष की पत्नी सुचेता कृपलानी कराची में सिंधी महिलाओं को बता रही थी कि ‘आपके मैकअप के कारण, लो कट ब्लाउज के कारण मुसलिम गुंडे आपको छेड़ते हैं। तब कराची में ही राष्ट्र सेविका समिति की मौसीजी हिंदू महिलाओं को संस्कारित रहकर बलशाली, सामर्थ्यशाली बनने का सूत्र बता रही थीं। जहाँ कांग्रेस के हिंदू कार्यकर्ता, पंजाब, सिंध छोड़कर हिंदुस्थान भागने में लगे थे और मुसलिम कार्यकर्ता मुसलिम लीग के साथ मिल गए थे, वहीं संघ के स्वयंसेवक डटकर, जान की बाजी लगाकर, हिंदू सिखों की रक्षा कर रहे थे। उन्हें सुरक्षित हिंदुस्थान में पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे।

फर्क था, बहुत फर्क था-कार्यशैली में, सोच में, विचारों में सभी में। स्वतंत्रता प्राप्ति 15 अगस्त, 1947 से पहले के पंद्रह दिनों के घटनाक्रम और अनजाने तथ्यों से परिचित करानेवाली पठनीय पुस्तक।

अनुक्रम
प्रस्तावना 7
मन की बात 11
पहला : 1 अगस्त, 1947 19
दूसरा : 2 अगस्त, 1947 26
तीसरा : 3 अगस्त, 1947 34
चौथा : 4 अगस्त, 1947 43
पाँचवाँ : 5 अगस्त, 1947 54
छठा : 6 अगस्त, 1947 64
सातवाँ : 7 अगस्त, 1947 76
आठवाँ : 8 अगस्त, 1947 88
नौवाँ : 9 अगस्त, 1947 100
दसवाँ : 10 अगस्त, 1947 110
ग्यारहवाँ : 11 अगस्त, 1947 121
बारहवाँ : 12 अगस्त, 1947 132
तेरहवाँ : 13 अगस्त, 1947 142
चौदहवाँ : 14 अगस्त, 1947 154
पंद्रहवाँ : 15 अगस्त, 1947 164
समापन 178
संदर्भ 181

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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