Vipradaas

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Author: Sharat Chandra Chattopadhyay

Availability: 5 in stock

Pages: 224

Year: 2012

Binding: Paperback

ISBN: 9788189424190

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

विप्रदास

बलरामपुर गांव में रथ-शाला के समीप किसान-मज़दूरों द्वारा आयोजित सभा में समीपस्थ रेलवे लाइन के कुलियों ने भी सम्मिलित होकर संगठन में अपनी आस्था जताई है। कलकत्ता के कुछ सुप्रसिद्ध वक्ताओं ने आज के समाज में व्याप्त विषमता और भेद-भाव के विरुद्ध भड़काऊ भाषाण दिए हैं। तथा अनेक प्रस्ताव भी पारित किए गये हैं। सभा की समाप्ति पर ‘वंदेमातरम्’ का उद्घोष करते हुए गांव की परिक्रमा करने के रूप में जुलूस भी निकाला गया है।

बड़ी संख्या में अनेक छोटे-छोटे ताल्लुक़ेदारों और ज़मींदारों की बस्ती होने के कारण बलरामपुर सम्पन्न गांव माना जाता है। गाँव के एक किनारे पर खेतिहर मुसलमानों का महल्ला है और इससे दूर बागदी और दूले जातियों के खेत-मज़दूरों की आवादी है। किसी समय इस गांव के एक छोर पर भागीरथी नदी बहती थी, किन्तु अब एक कोस के घेरे में आधे गोल चक्कर का एक तालाब सा बनकर रह गया है। इसी तालाब के किनारे ग़रीब श्रमिकों की झोंपड़-पट्टी है।

यज्ञेश्वर मुखोपाध्याय इस गांव का सर्वाधिक धनी माना जाता है। सम्पत्ति, धन, धरती, सम्पदा और व्यापार सभी क्षेत्रों में वह अन्य सभी सम्पन्न लोगों से कहीं अधिक बढ़-चढ़ कर है। लोगों द्वारा उसे ‘अकूत सम्पत्ति का स्वामी’ अथवा ‘धन कुबेर’ कहने को ग़लत नहीं कहा जा सकता।

मज़दूर सभा का लाल झण्डों को लहराता और नारे लगाता हुआ जुलूस जब यज्ञेश्वर की विशाल अट्टालिका के सामने से निकला, तो महल की छत पर चुपचाप खड़े एक बलिष्ठ एवं लम्बे-चौड़े शरीर वाले युवक को देखते ही जुलूस में शामिल सभी लोगों को सांप सूघ गया। नारे लगाने वालों ने चुप्पी साध ली और लोग इस प्रकार अपना मुंह छिपाने लगे, मानों उन्होंने अनजाने में अजगर के ऊपर पैर रख दिया हो। जुलूस के लोगों को एकदम सहमा देखकर बाहर से आये नेता लोगों ने नज़र उठाकर ऊपर देखा कि खम्भों की ओट में खड़ा होकर इस दृश्य को देखता तगड़े डील-डौल वाला एक युवक आराम से नीचे उतर रहा है। नेताओं ने स्थानीय लोगों से पूछा, ‘‘कौन हैं यह सज्जन !’’

लोगों ने दबी आवाज़ में धीरे-से कहा, ‘‘आप विप्रदास बाबू हैं।’’

‘‘कौन विप्रदास महाशय ! क्या यही गांव के ज़मींदार हैं ?’’

लोगों ने सिर हिलाकर संकेत दिया, ‘‘हां।’’

शहर के लोग भला किसी को क्यों महत्त्व देने लगे, अतः वे बोले, ‘‘तो इसी से डरकर तुम लोग चुप हो गए ?’’ भीड़ का उत्साह बढ़ाने के लिए नेताओं ने ऊंची आवाज में नारे लगाने शुरू किये, किन्तु गांव वालों ने उनका साथ नहीं दिया। वे नेता ‘भारत माता की जय’, ‘वन्दे मातरम्’, ‘किसान मज़दूर की जय’ जैसे नारों को अकेले ही बोलते हुए थककर परेशान हो गये। गांव के लोगों के होंठ भले हिले हों, किन्तु गले से आवाज़ बिलकुल नहीं निकली। सभी यही सोच रहे थे कि कहीं उनकी आवाज़ विप्रदा, के कानों में न पड़ा जाये। गांव वालों के इस कायरतापूर्ण व्यवहार ने नेताओं को बुरी तरह आहत किया। वे व्यथित एवं चिन्तित स्वर में बोले, ‘‘गांव के एक साधारण-से ज़मींदार से लोगों का इतना अधिक भयभीत होना सचमुच एक अनोखी बात है। ये ज़मींदार किसानों और मज़दूरों का ख़ून चूसने वाले होने के कारण तुम्हारे शत्रु हैं…ये ही तो…।’’

नेताओं के ओजस्वी भाषण में बाधा पड़ गयी। वे शायद बहुत कुछ उलटा-सीधा कहते, किन्तु भीड़ में से आवाज़ आयी, ‘‘ज़मीदार बाबू इनके भाई हैं।’’

‘‘किनके भाई हैं ?’’

सबसे आगे डण्डा लेकर खड़े पच्चीस-छब्बीस वर्ष के युवक नेताओं का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘मेरे भाई साहब हैं।’’

इस युवक के ख़र्चे, उत्साह ,उद्यम और आग्रह पर यह सारा आन्दोलन चल रहा था।

नेता का चकित होना स्वाभाविक था, वह बोले, ‘‘तो आप भी यहां के ज़मींदार हैं ?’’

युवक ने बिना कुछ बोले लजाकर सिर झुका दिया।

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Paperback

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Language

Hindi

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Publishing Year

2012

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