Ye Shahar Lagai Mohe Ban

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Ye Shahar Lagai Mohe Ban

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300.00 255.00

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300.00 255.00

Author: Zabir Hussain

Availability: 5 in stock

Pages: 160

Year: 2014

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126726363

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

ये शहर लगै मोहे बन

इस किताब के आखिरी सफहे पर यह इबारत दर्ज है – ‘कहते हैं, रूहों की आँखें हमेशा सलामत होती हैं ! उनकी याददाश्त कभी फिना नहीं होती ! वो सिर्फ गैब से आनेवाली किसी मोतबर आवाज की मुन्तजिर होती हैं !’ अपनी पिछली तमाम तहरीरों से बिलकुल अलग, इस किताब में, जाबिर हुसेन ने अपने पात्रों के नाम नहीं लिए ! उस बस्ती का नाम लेने से भी परहेज किया, जिसकी बे-चिराग गलियों में इस लम्बी कथा-डायरी की बुनियाद पड़ी !

एक बिलकुल नए फ्रेम में लिखी गई यह कथा-डायरी कुछ लोगों को जिन्दा रूहों की दास्ताँ की तरह लगेगी ! लेकिन इस दास्ताँ की जड़ें किसी पथरीली जमीं की गहराइयों में छिपी हैं ! जाबिर हुसेन ने इस पथरीली जमीन की गहराइयों में उतरने का खतरा मोल लिया है ! जिन जिन्दा रूहों को उन्होंने इस तहरीर में अपना हमसफ़र बनाया है, वो अगर उनसे खू-बहा तलब करें, तो उनके पास टूटे ख्वाबों के सिवा देने को क्या है ! जाबिर हुसेन जानते हैं, ये टूटे ख्वाब उनके लिए चाहे जितने कीमती हों, बस्ती की जिन्दा रूहों के सामने उनकी कोई वक्अत नहीं !

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Hardbound

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Publishing Year

2014

Pulisher

Language

Hindi

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