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1942 Ki August Kranti
₹695.00 ₹595.00
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Author: Fanish Singh
Pages: 224
Year: 2021
Binding: Hardbound
ISBN: 9788126722594
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
1942 की अगस्त क्रान्ति
भारत का राष्ट्रीय आंदोलन अंग्रेजी साम्राज्यवाद से मुक्ति–संघर्ष की गाथा है। स्वाधीनता आंदोलन के संघर्ष में 1857 का मुक्ति संग्राम उल्लेखनीय है। इसमें हर वर्ग, जमींदार, मजदूर और किसान, स्त्री और पुरुष, हिंदू और मुसलमान–सभी लोगों ने अपनी एकता एवं बहादुरी का परिचय दिया।
‘अगस्त क्रांति’ या 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को हम भारतीय स्वाधीनता का द्वितीय मुक्ति संग्राम कह सकते हैं जिसके फलस्वरूप 5 वर्ष बाद 1947 में हमें आजादी मिली। पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में : ‘यह किसी पार्टी या व्यक्ति का आंदोलन न होकर आम जनता का आंदोलन था जिसका नेतृत्व आम जनता द्वारा ले लिया गया था।’ ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का यह 70वां वर्ष है किंतु आज भी भाषा, धर्म, क्षेत्रीयता के तत्त्व भारत को निगल जाने को आतुर हैं। राष्ट्रीय एकीकरण देश के समक्ष एक दुखजनक समस्या बन गई है। इसका मुख्य कारण स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी का राष्ट्रीय आंदोलन के बलिदानी इतिहास से परिचित न होना है।
इसी पृष्ठभूमि में यह आवश्यक समझा गया कि नई पीढ़ी विशेषकर नवयुवकों के लिए एक ऐसी पुस्तक की रचना की जाए जिससे वे स्वाधीनता आंदोलन की कड़ियों से परिचित हो सकें। इन कड़ियों में जहाँ सर्वप्रथम भारत के जाने–माने इतिहासकार विपिनचंद्र, ताराचंद, डॉ. के.के. दत्त के विचारों को प्रस्तुत किया गया है, वहीं डॉ. बी. पट्टाभि सीतारामय्या, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पं. जवाहरलाल नेहरू, पी.सी. जोशी, मधु लिमये, आदि के विचारों के साथ आज के इतिहासविज्ञ प्रो. भद्रदत्त शर्मा, प्रो. सुमंत नियोगी आदि के भी विचार ‘अगस्त क्रांति’ के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालते हैं।
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Binding | Hardbound |
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Language | Hindi |
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Publishing Year | 2021 |
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डॉ. फणीश सिंह
जन्म : 15 अगस्त, 1941 को ग्राम नरेन्द्रपुर जिला सिवान (बिहार) में। 15 वर्ष की आयु में प्रयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन से ‘विशारद’ की परीक्षा उत्तीर्ण की। एम.ए. तथा बी.एल. करने के पश्चात् अगस्त 1967 में पटना उच्च न्यायालय में वकालत आरम्भ की। छात्र-जीवन से ही हिन्दी साहित्य से अनुराग। आपके लेख और यात्रा-संस्मरण विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। 1983 में मास्को और 1986 में कोपेनहेगन विश्व-शान्ति सम्मेलन में शामिल हुए। भारत सोवियत मैत्री संघ के प्रतिनिधि के रूप में तत्कालीन सोवियत संघ की पाँच बार यात्रा की। 2006 में ऐप्सो के सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ चीन की यात्रा की। आप अब तक छ: महाद्वीपों के 75 देशों की यात्रा कर चुके हैं।
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