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Description
भूमिका
हृदयेश की यह आत्मकथा। इसे लिखते हुए हृदयेश ने अपने समय, परिवेश और तमाम संघर्षों को तो रग-रेशे के साथ वर्णित किया है ही, अपनी उन पोच कमजोरियों, गलीज गलतियों, टुच्ची ज्यादतियों और शर्मसार विचलनों को भी बेबाकी से उघाड़ा है जिन पर हर दुनियादार आदमी अंतिम साँस तक रंगीन भारी पर्दा डाले रहता है। हृदयेश ने अपने माता, पिता, पत्नी, भाई व अन्य सगों के कई वैसे ही जीवन-प्रसंगों पर से भी इसी निर्दयता से पर्दा उठाया है। यहाँ तक कि नामी संपादकों, बड़े प्रकाशकों, साहित्य के महाबलियों के प्रति अपने आक्रोशों, असंतोषों को ढँका-छिपा नहीं रहने दिया है इस लोक-सत्य को परे ठेलकर कि पानी में रहकर मगरमच्छ से वैर भविष्य बिगाड़ होता है। हृदयेश ने स्वयं को इस मत से बाँधे रखा है कि कलम पकड़ने पर पूरी सच्चाई का बयान करना कलमकार का धर्म है, भले ही सच्चाई के इस सफर में जोखिम- दर-जोखिम हों।
एक और मजेदार स्थिति। हृदयेश ने आत्मकथा को उपन्यास बनाने की कोशिश की थी, मगर पटखनी खा बैठे। पटखनी खाकर उन्हें बुरा नहीं लगा। उनकी हार विधा के बहाने साहित्य के हक में है, ऐसा उन्होंने स्वीकार कर लिया।
– हृदयेश
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2010 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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