- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
वातायन
भूमिका
घर के झरोखे से बैठे-बैठे देखते रहिए, जाने कितने दृश्य आँखों के आगे चलचित्र की तरह गुज़रते जाते हैं, तरह-तरह के लोग, तरह-तरह की घटनाएँ। शिवानीजी के इस “वातायन” से भी बहुत विस्तृत और रंग-बिरंगे दृश्य-पट दिखाई देते हैं। बिना पैसा-कौड़ी लिए हड्डी बिठाने वाला, चमचमाती मोटरों पर पोश-होटलों में महँगे डिनर खाते लोग, और बाहर एक-एक दाने को तरसते भिखारी। न जाने कितनी पुरानी यादें, कितने कड़वे-तीते अनुभव, जो हमें रोज होते हैं, और इनके पीछे हैं लेखिका की गहरी संवेदना और अप्रतिम वर्णन शैली। ऊँचे अधिकारी अपने इन्द्रासन से हटते ही किस प्रकार नगण्य हो जाते हैं, छोटे-छोटे दफ्तरों के छोटे छोटे अधिकारियों के हाथों किस प्रकार प्रताड़ना सहते हैं, मृत पति की पेंशन लेने किस प्रकार एक महिला को कदम-कदम पर हृदयहीन लालफीताशाही का सामना करना पड़ता है, ये सब अनुभव मार्मिकता के साथ शिवानी के ‘वातायन’ में मिलते हैं।
इनको निबन्ध की संज्ञा देने से इनका ठीक परिचय नहीं मिलता। यह झाँकियाँ हैं, केवल बाहरी नहीं अन्तर की भी।
लखनऊ के दैनिक ‘स्वतंत्र भारत’ में प्रति सप्ताह ‘वातायन’ को पढ़ने के लिए लोग कितने लालायित रहते हैं, इनको पढ़ने के बाद कितने फोन और पत्र आते हैं, लेखिका और सम्पादक दोनों के पास, यह इनकी लोकप्रियता का प्रमाण है। शिवानी की प्रतिभा का यह नया आयाम है। इनमें वही गहरी पकड़ है जो उनकी कहानियों व उपन्यासों में मिलती है। साथ ही इनमें लेखिका के प्राचीन संस्कृत साहित्य के ज्ञान और सुसंस्कृत व्यक्तित्व का भी पुट है। इनसे हिन्दी पत्रकारिता में स्तम्भ लेखन का स्तर ऊँचा हुआ है।
अंग्रेजी में चार्ल्स डिकेंस, मार्क ट्वेन, रडयार्ड किपलिंग, चेस्टर्टन आदि के उत्कृष्ट निबन्ध और कथाएँ समाचार पत्रों के माध्यम से ही पहली बार प्रस्तुत हुई थीं। हिन्दी की पत्र-पत्रिकाएँ विविध और विशाल पाठक वर्ग तक पहुँचती हैं और लेखक को नियमित और रेडीमेड श्रोता-मंडल देती हैं, परन्तु पत्र-पत्रिकाएँ एक बार पढ़कर फेंक दी जाती हैं, जबकि पुस्तकें साथ रहती हैं। ‘वातायन’ में शिवानी ने जो साहित्य-निधि दी है वह अखबार के पन्नों में दबकर विस्मृत हो जाती, यदि इसके प्रकाशकों ने उसे पुस्तक रूप में स्थायी रूप देने का सत्साहस न किया होता। इसके लिए वह पाठक के साधुवाद का पात्र है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2011 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.