Description
ऐसी बसी पिपरिया
ऐसे बसी पिपरिया 1870 के दशक में रेलवे के बिछाये जाने के बाद मध्य भारत में वन्य भूमि के शहरीकरण की प्रक्रिया को दर्शाती है। अगले डेढ़ सौ साल में उत्तर और पश्चिमी दिशाओं से आर्थिक तंगी और अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचकर आये लोगों ने रेल पटरी के किनारे पिपरिया को बसाया। खेती के लिए जंगल की कटाई और निरन्तर आप्रवासन ने पिपरिया को एक ऐसा रूप दिया जिसे स्थानीय लोग ‘मिनीइंडिया’ भी कहकर पुकारते हैं। किताब में दर्ज की गयी स्मृतियाँ व मौखिक कहानियाँ शहर बनने से जुड़े स्थानीय लोगों के अनुभवों, जानकारी और समझ को समेटते हुए नयी जीवन पद्धतियों की विकास प्रक्रिया का वर्णन करती हैं।
यह कहानियाँ पाठकों के लिए विभिन्न जनजाति, भाषाओं, जातियों और वर्गों के बीच एक नयी गतिशीलता को रेखांकित करती हैं। इन विभिन्नताओं के कारण ही पिपरिया स्वतन्त्रता मिलने व उसके कुछ वर्षों बाद तक समाजवादी विचारों का एक अहम केन्द्र बना रहा।
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