Amali

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Author: Hrishikesh Sulabh

Availability: Out of stock

Pages: 96

Year: 2021

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126719587

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

अमली

अमली (नाटक) बिहार की बिदेसिया शैली में लिखित अमली नाटक आधुनिक भी है और अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ भी। नाटक में प्रचुर पारम्परिक गीतों एवं नृत्यों का समन्वय किया गया है जो नाटक के कथ्य एवं बिदेसिया शैली दोनों के अभिन्न अंग हैं। सूत्रधार और गड़बड़िया जैसे पात्र अमली को एक ओर संस्कृत परम्परा से जोड़ते हैं तो दूसरी ओर लोक परम्परा से। नाटक रोचक होने के साथ ही हमें सोचने को मजबूर करता है और कहीं वर्तमान परिस्थिति से मुक्ति पाने-दिलाने के लिए उन्मुख करता है। टोटल थिएटर को रूपायित करनेवाली हृषीकेश सुलभ की यह कृति हिन्दी नाट्य साहित्य एवं रंगमंच की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

– प्रतिभा अग्रवाल

दरअसल अमली भारत के किसी भी पिछड़े प्रान्त के किसी भी ज़िले के किसी भी गाँव में मिल जाएगी। इस मायने में अमली समकालीन समाज की जीवन्त पुनर्रचना है। अमानवीय अर्थतंत्र और सामन्ती समाज की विद्रूपताओं में पिसते व्यापक समाज की दारुण स्थितियाँ अमली को एक समकालीन रचना बनाती हैं। सूत्रधार, विदूषक और समाजी ब्रेख़्त के थियेटर की शैली में यातना और बेचैनी के आवेगों में बहते नाट्य-दर्शकों की चेतना को झकझोरते हैं और उन्हें नाटक के बजाय समाज की विराट सच्चाइयों से जोड़ते हैं।

– उर्मिलेश, नवभारत टाइम्स, पटना, 1 जनवरी, 1988

स्वाधीनता प्राप्ति के बाद हिन्दी रंगमंच का नवोन्मेष तो हुआ, पर उसमें भारतीय रंग परम्परा विलुप्त-सी रही। पिछले दो-तीन दशकों से भारतीय रंगदृष्टि की तलाश चल रही है। इस दिशा में एक सार्थक क़दम है बिदेसिया शैली में हृषीकेश सुलभ लिखित अमली नाटक का मंचन।

– श्रीप्रकाश, दैनिक हिन्दुस्तान, पटना, जुलाई 1988

अमली उस पीड़ित समाज की प्रतिनिधि है जिसे सत्ता, सम्पत्ति और षड़्यंत्र ने सदा लूटा है।

– जनसत्ता, कोलकाता, 26 दिसम्बर, 1991

हृषीकेश सुलभ द्वारा लिखित इस नाटक का मंचन वर्तमान में राँची रंगमंच के ठहरी हुई झील में एक बड़ा पत्थर था। यह बहुख्यात नाटक भिखारी ठाकुर के बिदेसिया से उद्भूत शैली पर आधारित प्रयोग है। सीधे-सादे कथ्य के साथ जुड़ा शिल्प इस नाटक की मूल ताक़त है।

– प्रियदर्शन, राँची एक्सप्रेस, राँची, 25 जून, 1992

अमली में बिदेसिया शैली की सार्थक रंगयुक्तियों का नए तरीके से कुशलता के साथ इस्तेमाल किया गया। राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी रंगमंच के भीतर यह एक नया प्रयोग था। इस प्रयोग ने पटना रंगमंच को नया आकाश दिया।

– चंद्रेश्वर, दैनिक हिन्दुस्तान, पटना, 17 मार्च, 1993

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Hardbound

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Publishing Year

2021

Pulisher

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Hindi

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