Anushtup

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225.00 190.00

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Author: Anamika

Availability: 4 in stock

Pages: 152

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9789389563030

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

अनुष्टुप

ज्ञान की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए आप जिस संज्ञान तक पहुँचते हैं, शब्दों की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए जिस गहन मौन तक, मेरा अकेलापन आपके अकेलेपन से जहाँ रू-ब-रू होता है, कविता वहीं एक चटाई-सी बिछाती है कि पदानुक्रम टूट जायें, भेद-भाव की सारी संरचनाएँ टूट जायें, एक धरातल पर आ बैठे दुनिया के सारे ध्रुवान्त-आपबीती और जगबीती, गरीब-अमीर, स्त्री-पुरुष, श्वेत-अश्वेत, दलित-गैरदलित, देहाती-शहराती, लोक और शास्त्र।

कविता के केन्द्रीय औज़ार-रूपक और उत्प्रेक्षा भेदभाव की सारी संरचनाएँ तोड़ते हुए एक झप्पी-सी घटित करते हैं-मैक्रो-माइक्रो, घरेलू और दूरस्थ वस्तुजगत के बीच। सहकारिता के दर्शन में कविता के गहरे विश्वास का एक प्रमाण यह भी है कि जहाँ रूपक न भी फूटें, वहाँ नाटक से संवाद, कथाजगत से चरित्र और वृत्तान्त वह उसी हक़ से उठा लाती है, जिस हक़ से हम बचपन में पड़ोस के घर से जामन उठा लाते थे। जामन कहीं से आता है, दही कहीं जम जाता है। यह है बहनापा, जनतन्त्र का अधिक आत्मीय, मासूम चेहरा जो कविता का अपना चेहरा है। बहुकोणीय अगाधता ही कविता का सहज स्वभाव है। वह स्वभाव से ही अन्तर्मुखी है, कम बोलती है, और जो बोलती है, इशारों में, स्त्री की तरह। जैसे नये पुरुष को नयी स्त्री के योग्य बनना पड़ता है।

नये पाठक को कविता का मर्म समझने का शील स्वयं में विकसित करना पड़ता है। कलाकृतियाँ उत्पाद हो सकती हैं पर उत्पाद होना उनका मूल मन्तव्य नहीं होता। कोलाहल, कुमति और कुत्सित अन्याय के क्रूर प्रबन्धनों से मुरझाई, थकी हुई, विशृंखल दुनिया में कुछ तो ऐसा हो जो यान्त्रिक उपयोगितावाद के खाँचे से दूर खड़ा होकर मुस्का देने की हिम्मत रखे, जैसे कि प्रेम, शास्त्रीय संगीत, रूपातीत चित्रकला और समकालीन कविता। कभी-कभी तो मुझे ऐसा भी जान पड़ता है कि परमाणु में जैसे प्रोटॉन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन एक अभंग लय में नाचते हैं, कविता में भाव, विचार और मौन! राजनीति, धर्म या कानून तो हमें खूखार होने से बचा नहीं पाये, पर प्रेम और कविता बचा ले शायद–पूरे जीवन-जगत की विडम्बना एक कौंध में उजागर कर देने की कामना के बलबूते, एक स्फुरण, एक विचार, एक स्वप्न, एक चुनौती, जुनून, उछाल-सब एक साथ उजागर करता विरल शब्द-संयोजक और ऐसा महामौन है कविता जो प्यार या जीवन का मर्म समझ लेने के बाद ही सम्भव होता है।

कविता यानी वह स्पेस जो यथार्थ को इस तरह बाँचे कि वह सपना लगने लगे, कविता यानी वह स्पेस जहाँ शब्द-शरीर भी सब झेल-भोग लेने के बाद धीरे-धीरे छोड़ दिया जाये और मात्र मौन का दुशाला ओढ़े चल दिया जाये अनन्त की तरफ़।

Additional information

Weight 0.5 kg
Dimensions 21 × 14 × 4 cm
Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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