Faiz Ki Shakhshiyat : Andhere Main Surkh Lau
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फैज की शख्सियत : अंधेरे में सुर्ख लौ
शायद ये भी धार्मिक माहौल में परवरिश पाने का ही असर था कि फैज की शायरी में पुराने संस्कारों और नयेपन का एक बहुत अच्छा संयोजन पाया जाता था। बचपन और लड़कपन में वो मौलवी इब्राहीम साहब सियालकोटी और सैय्यद मीर हसन साहब जैसे ज्ञानियों के, और ओरियेंटल कॉलेज में एम.ए. अरबी के जमाने में मोहम्मद सफ़ी साहब के शागिर्द रहे थे। इन बुजुर्गों का जिक्र वो बड़ी श्रद्धा और इज़्जत से करते थे। बुख़ारी साहब गवर्नमेंट कॉलेज में उनके अंग्रेज़ी के उस्ताद थे। इसके अलावा दूसरे दोस्त अब्दुल मजीद सालिक, तासीर साहब, मजीद मलिक साहब, अब्दुर्रहमान चुगृताई साहब, सूफ़ी गुलाम मुस्तफा तबस्सुम साहब और इम्तियाज़ अली ताज साहब को भी अपना बुजुर्ग समझते थे, और उनका बड़ा आदर करते थे। और उनसे बातचीत में भी रख-रखाव का ध्यान रखते थे। उनका ये अंदाज देखकर मैंने एक बार उनसे कहा कि ‘फ़ैज़ भाई, हम भी आपको अपना बुजुर्ग समझते हैं। आदर और सम्मान में तो नहीं, मगर कुछ रख-रखाव में कमी रह जाती है। आपसे कभी-कभी असहमति भी कर लेते हैं, और बहस भी।” हंसकर कहने लगे, “ठीक है, हम इसे जेनरेशन गैप समझते हैं, जो हमें कबूल है।”
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2011 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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