Hindi Ke Pramukh Bhasha Vaigyanik Boliyan Evam Asmi Tamulak Bhashavigyan

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Hindi Ke Pramukh Bhasha Vaigyanik Boliyan Evam Asmi Tamulak Bhashavigyan

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350.00 300.00

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Author: Dr. Rajendra Prasad Singh

Availability: 3 in stock

Pages: 143

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9789388260930

Language: Hindi

Publisher: Aman Prakashan

Description

हिंदी के प्रमुख भाषा वैज्ञानिक बोलियाँ एवं अस्मितामूलक भाषाविज्ञान

प्रस्तुत पुस्तक तीन खंडों में विभक्त है। इसके प्रथम खंड में हिंदी के प्रमुख भाषा – वैज्ञानिकों का परिचयात्मक विश्लेषण एवं उनकी रचनाओं का मूल्यांकन है। साथ ही उनके सिद्धांतों तथा स्थापनाओं का परीक्षण भी है। इनमें कुछ पाश्चात्य भाषावैज्ञानिक हैं और कुछ भारतीय हैं। पाश्चात्य भाषावैज्ञानिकों में सिर्फ तीन हैं – सैमुएल हेनरी केलाग, ए. फ्रेडरिक रूडोल्फ हार्नले तथा जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन। भारतीय भाषा वैज्ञानिकों की संख्या बारह है।

पुस्तक के द्वितीय खंड में हिंदी की प्रमुख बोलियों की जनसंख्या, क्षेत्र-विस्तार, व्याकरणिक विशेषताएँ एवं लोकसाहित्य तथा संस्कृति आदि का सविस्तार वर्णन है। डॉ. ग्रियर्सन ने सिर्फ आठ बोलियों को ही भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से हिंदी के अंतर्गत माना है। इसीलिए ‘हिंदी’ शब्द का प्रयोग उन्होंने केवल ‘पश्चिमी हिंदी’ तथा ‘पूर्वी हिंदी’ के नाम में ही किया है।

पुस्तक के तृतीय खंड में हिंदी का अस्मितामूलक भाषाविज्ञान है। हिंदी में अस्मितामूलक साहित्य का सृजन तेजी से हो रहा है। हाशिए के समाज पर केंद्रित नित नए विमर्श साहित्य में आ रहे हैं। ‘फारवर्ड प्रेस’ के तेजस्वी पत्रकार प्रमोद रंजन ने ओबीसी साहित्य पर कई विशेषांक प्रकाशित किए हैं। हिंदी का भाषाविज्ञान इस मामले में पिछड़ा हुआ है। कारण कि हिंदी में अस्मितामूलक भाषाविज्ञान की कोई अवधारणा नहीं है। मैंने पहली बार हिंदी के अस्मितामूलक भाषा विज्ञान पर कुछ कार्य किया है। उम्मीद करता हूँ कि भाषाविज्ञान, विशेषकर समाज भाषा विज्ञान की यह नई शाखा निरंतर आगे बढ़ेगी।

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Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

2019

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