Hindutva

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Author: Savarkar

Availability: 5 in stock

Pages: 139

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

हिन्दुत्व

श्री सावरकर

क्रान्तिकारियों के मुकुटमणि स्वातन्त्र्यवीर सावरकर का जन्म 28 मई सन् 1883 ई. को नासिक जिले के भगूर ग्राम में एक चितपावन ब्राह्मण वंश परिवार में हुआ था। उनके पिता श्रीदामोदर सावरकर एवं माता राधाबाई दोनों ही परम धार्मिक तथा कट्टर हिन्दुत्वनिष्ठ विचारों के थे। विनायक सावरकर पर अपने माता-पिता के संस्कारों की छाप पड़ी और वह प्रारम्भ में धार्मिकता से ओतप्रोत रहा।

नासिक में विद्याध्ययन के समय लोकमान्य तिलक के लेखों व अंग्रेजों के अत्याचारों के समाचारों ने छात्र सावरकर के हृदय में विद्रोह के अंकुर उत्पन्न कर दिये। उन्होंने अपनी कुलदेवी अष्टभुजी दुर्गा की प्रतिमा के सम्मुख प्रतिज्ञा ली—‘‘देश की स्वाधीनता के लिए अन्तिम क्षण तक सशस्त्र क्रांति का झंडा लेकर जूझता रहूँगा।’’

युवक सावरकर ने श्री लोकमान्य की अध्यक्षता में पूना में आयोजित एक सार्वजनिक समारोह के सबसे पहले विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का शुभारम्भ किया कालेज से निष्कासित कर दिये जाने पर भी लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से वह लन्दन के लिए प्रस्थान कर गये।

साम्राजयवादी अंग्रेज़ों के गढ़ लंदन में सावरकर चुप न बैठ सके। उन्हीं की प्ररेणा पर श्री मदनलाल ढींगरा ने सर करजन वायली की हत्या करके प्रतिशोध लिया। उन्होंने लन्दन से बम्ब व पिस्तौल, गुप्त रूप से भारत भिजवाये। लन्दन में ही ‘1857 का स्वातन्त्र्य समर’ की रचना की। अंग्रेज सावरकर की गतिविधियों से काँप उठा।

13 मार्च 1910 को सावरकरजी को लन्दन के रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार करा लिया गया। उन्हें मुकदमा चलाकर मृत्यु के मुँह में धकेलने के उद्देश्य से जहाज में भारत लाया जा रहा था कि 8 जुलाई 1910 को मार्लेस बन्दरगाह के निकट वे जहाज से समुद्र में कूद पड़े। गोलियों की बौछार के बीच काफी दूर तक तैरते हुए वे फ्रांस के किनारे जा लगे, किन्तु फिर पकड़ लिये गये। भारत लाकर मुकदमे का नाटक रचा गया और दो आजन्म कारावास का दण्ड देकर उनको अण्डमान भेज दिया गया। अण्डमान में ही उनके बड़े भाई भी बन्दी थे। उनके साथ देवतास्वरूप भाई परमानन्द, श्री आशुतोष लाहिड़ी, भाई हृदयरामसिंह तथा अनेक प्रमुख क्रांतिकारी देशभक्त बन्दी थे। उन्होंने अण्डमान में भारी यातनाएँ सहन कीं। 10 वर्षों तक काला-पानी में यातनाएँ सहने के बाद वे 21 जनवरी 1921 को भारत में रतनागिरि में ले जाकर नज़रबन्द कर दिए गये। रतनागिरि में ही उन्होंने ‘हिन्दुत्व’, ‘हिन्दू पद पादशाही’, ‘उशाःप’, ‘उत्तर क्रिया’ (प्रतिशोध), ‘संन्यस्त्र खड्ग’ (शस्त्र और शास्त्र) आदि ग्रन्थों की रचना की; साथ ही शुद्धि व हिन्दू संगठन के कार्य में वे लगे रहे।

जिस समय सावरकर ने देखा कि गांधीजी हिन्दू-मुस्लिम एकता के नाम पर मुस्लिम पोषक नीति अपनाकर हिन्दुत्व के साथ विश्वासघात कर रहे हैं तथा मुसलमान प्रोत्साहित होकर देश को इस्लामिस्तान बनाने के ख्वाब देख रहे हैं, उन्होंने हिंदू संगठन की आवश्यकता अनुभव  की। 30  दिसम्बर 1937 को अहमदाबाद में हुए अ,.भा. हिन्दू महासभा के वे अधिवेशन के वे अध्यक्ष चुने गये। हिन्दू महासभा के प्रत्येक आन्दोलन का उन्होंने तेजस्विता के साथ नेतृत्व किया। भारत-विभाजन का उन्होंने डटकर विरोध किया।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने उन्हीं की प्रेरणा से आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना की थी। वीर सावरकर ने ‘‘राजनीति का हिन्दूकरण और हिन्दू का सैनिकीकरण’’ तथा ‘‘धर्मान्त याने राष्ट्रान्तर’ यो दो उद्घोष देश व समाज को दिये।

गांधीजी की हत्या के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया, उन पर मुकदमा चलाया गया, किन्तु वे ससम्मान मुक्त कर दिए गये।

26 फरवरी 1966 को इस चिरंतन ज्योतिपुंज ने 22 दिन का उपवास करके स्वर्गारोहण किया। हिन्दू राष्ट्र भारत, एक असाधारण योद्धा, महान् साहित्यकार, वक्ता, विद्वान, राजनीतिज्ञ, समाज-सुधारक, हिन्दू संगठक से रिक्त हो गया।

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Paperback

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Hindi

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2021

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